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________________ ३० प्राकृत साहित्य का इतिहास चेटों आदि द्वारा बोली जाती थी। भरत के नाट्यशास्त्र (१७. ५०, ५५-५६) के कथनानुसार अन्तःपुर में रहनेवालों, सेंध लगानेवालों, अश्वरक्षकों और आपत्तिग्रस्तनायकों द्वारा मागधी बोली जाती थी। दशरूपककार (२.६५ ) का कहना है कि पिशाच और नीच जातियाँ इस भाषा का प्रयोग करती थीं। शूद्रक के मृच्छकटिक में संवाहक, शकार का दास स्थावरक, वसन्तसेना का नौकर कुंभीलक, चारुदत्त का नौकर वर्धमानक, भिक्षु तथा चारुदत्त का पुत्र रोहसेन ये छहों (टीकाकार पृथ्वीधर के अनुसार) मागधी में बोलते हैं। शकुन्तला नाटक में दोनों प्रहरी और धीवर तथा शकुन्तला का छोटा पुत्र सर्वदमन इसी भाषा में बात करते हैं। मुद्राराक्षस में जैन साधु, दूत तथा चांडाल के वेश में अपना पार्ट खेलने वाले सिद्धार्थक और समिद्धार्थक मागधी में ही बोलते हैं। वेणीसंहार में राक्षस और उसकी स्त्री इसी प्राकृत का प्रयोग करते हैं। पिशल के कथनानुसार सोमदेव के ललितविग्रहराजनाटक में जो मागधी प्रयुक्त की गई है वह वैयाकरणों के नियमों के साथ अधिक मिलती है । यहाँ भाट और चर मागधी में बात करते हैं।' ___ वररुचि और हेमचन्द्र ने मागधी के नियमों का वर्णन कर शेष नियम शौरसेनी की भांति समझ लेने का आदेश दिया है। जान पड़ता है शोरसेनी से अत्यधिक प्रभावित होने के कारण ही इम प्राकृत का रूप बहुत अस्पष्ट हो गया । १. प्राकृतभाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ ४५। २. पिशल का कहना है कि मागधी में सबसे अधिक सचाई के साथ हेमचन्द्र के ४.२८८.नियम का पालन हुआ है । इसके अनुसार स के स्थान में श और र के स्थान में ल (विलास-विलाश; नर-नल) हो जाता है। इसी तरह ४. २८७ नियम का भी पालन हुआ है। इसके अनुसार पुल्लिंग और नपुंसकलिंग भकारान्त शब्दों का कर्ता एकवचन में एकारान्त रूप होता है ( नरः-नले )। इसके अतिरिक्त वररुचि (११.९) और हेमचन्द्र (४. ३०१) के अनुसार मागधी में अहं के
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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