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________________ महीपालकथा ४८९ आचार्यों का कनक के कमल पर आसीन होना आदि विषयों का वर्णन किया है। वेश्यासेवन को वर्जित बताया है। सोने-चाँदी (सोवन्नियहट्ट) और कपड़े की दुकानों (दोसियहट्ट) का उल्लेख है । उड़ते हुए चिड्डे की ( उड्डिय चिडु व्व ) उपमा दी गई है। डिड्डिरिया शब्द का मेढ़की के अर्थ में प्रयोग हुआ है। इसके सिवाय आरामसोहाकथा (सम्यक्त्वसप्तति में से उद्धृत), अंजनासुन्दरीकथा, अंतरंगकथा, अनन्तकीर्तिकथा, आर्द्रकुमारकथा, जयसुन्दरीकथा, भव्यसुन्दरी कथा, नरदेवकथा, पद्मश्रीकथा, पूजाष्टककथा, पृथ्वीचन्द्रकथा, प्रत्येकबुद्धकथा, ब्रह्मदत्ताकथा, वत्सराजकथा, विश्वसेनकुमारकथा, शंखकलावतीकथा, शीलवतीकथा, सर्वांगसुन्दरीकथा, सहस्रमल्लचौरकथा, सिद्धसेनादिदिवाकरकथा, सुरसुन्दरनृपकथा, सुव्रतकथा, सुसमाकथा, सोमश्रीकथा, हरिश्चन्द्रकथानक आदि कितने ही कथाग्रन्थों की प्राकृत में रचना की गई। इसी प्रकार मौन एकादशीकथा आदि कथायें तिथियों को लेकर तथा गंडयस्सकथा, धर्माख्यानककोश, मंगलमालाकथा आदि संग्रह-कथायें लिखी गईं ।' १. देखिये जैन ग्रंथावलि, श्री जैन श्वेताम्बर कान्फरेन्स, मुंबई, वि. सं० १९६५, पृष्ठ २४७-२६८।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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