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________________ २८ . प्राकृत साहित्य का इतिहास मागध और ब्राचड पैशाच का विवेचन किया है। लक्ष्मीधर की षड्भाषाचन्द्रिका (श्लोक ३५) के अनुसार पैशाची और चूलिका पैशाची राक्षस, पिशाच और नीच व्यक्तियों द्वाराबोली जाती थी। यहाँ पांड्य, केकय, बाह्नीक, सिंह (? सह्य), नेपाल, कुन्तल,सुधेष्ण, भोज, गांधार, हैवक, (?) और कन्नौज की गणना पिशाच देशों में की गई है। इन नामों से पता चलता है कि पैशाची भारत के उत्तर और पश्चिमी भागों में बोली जाती रही होगी। भोजदेव ने सरस्वतीकंठाभरण (२, पृष्ठ १४४) में उच्च जाति के लोगों को शुद्ध पैशाची बोलने के लिये मना किया है। दंडी ने काव्यादर्श (१.३८) में पैशाची भाषा को भूतभाषा बताया है। __ पैशाची ध्वनितत्त्व की दृष्टि से संस्कृत, पालि और पल्लववंश के दानपत्रों की भाषा से मिलती-जुलती है। संस्कृत के साथ समानता होने के कारण इसमें श्लेषालंकार की बहुत सुविधा है। गुणाढ्य की बृहत्कथा पैशाची की सबसे प्राचीन कृति है । दुर्भाग्य से आजकल यह उपलब्ध नहीं है | बुधस्वामी के बृहत्कथाश्लोकसंग्रह, क्षेमेन्द्र की बृहत्कथामंजरी और सोमदेव के कथासरित्सागर से इसके संबंध में बहुत सी बातों का परिचय प्राप्त होता है । प्राकृतव्याकरण और अलंकार के पंडितों ने जो थोड़े-बहुत उदाहरण या उद्धरण दिये हैं उनके ऊपर से इस भाषा का कुछ ज्ञान होता है।' १. वररुचि ने प्राकृतप्रकाश के दसवें परिच्छेद में पैशाची के निम्न लक्षण दिये हैं: (क) पैशाची में वर्ग के तृतीय और चतुर्थ अक्षरों के स्थान में क्रमशः प्रथम और द्वितीय अक्षर हो जाते हैं (गगन-गकन, मेघ-मेख), (ख) ण के स्थान में न हो जाता है (तरुणी-तलुनी), (ग)ष्ट के स्थान में सट हो जाता है (कष्ट-कसट), (घ) स्न के स्थान में सन हो जाता है (स्नान-सनान), (3) न्य के स्थान में न हो जाता है (कन्या-कआ)। चंड (प्राकृतलक्षण ३. ३८), हेमचन्द्र (प्राकृतव्याकरण
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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