SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 464
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५२ प्राकृत साहित्य का इतिहास आदि नामों से भी उल्लिखित किया जाता था। आगे चलकर जिनपूजा की विधि बताई गयी है । आदर सत्कार करने के लिये तांबूल देने का रिवाज था। श्रीगुप्तकथानक में कुशलसिद्धि नामक मंत्रवादी का उल्लेख है। राजा के समक्ष उपस्थित होकर उसने परविद्या का छेदकारी मंत्र पढ़कर चारों दिशाओं में चावल फेंके। सुजयराजर्षिकथानक में नाना देशों में भ्रमण करनेवाले, विविध भाषाओं के पंडित, तथा मंत्र-तंत्र में निपुणज्ञानकरंड नाम के कापालिक मुनि का उल्लेख है। राजसभा में उपस्थित होकर उसने राजपुत्र को आशीर्वाद दिया कि पातालकन्या के तुम नाथ बनो। विध्यगिरि के पास यक्षभवन में पहुँच कर उसने पास के गोकुल में से चार बकरे मँगवाये, उन्हें स्नान कराया, उन पर चंदन के छींटे दिये, तत्पश्चात् मंत्रसिद्धि के लिये उनका वध किया। चंडिका को प्रसन्न करने के लिये पुरुषों को स्नान करा और उन्हें श्वेत वस्त्र पहना उनकी बलि दी जाती थी। नावों द्वारा परदेश की यात्रा करते समय जब जलवासी तिमिंगल आदि दुष्ट जन्तु जल में से ऊपर उछलकर आते तो उन्हें भगाने के लिये वाद्य वगैरह बजाये जाते और अग्नि को प्रज्वलित किया जाता था, फिर भी मगर-मच्छ नाव को उलट ही दिया करते थे । समुद्र तट पर इलायची, लौंग, नारियल, केला, कटहल आदि फलों के पाये जाने का उल्लेख है। पन्नतिनामक महाविद्या देवता का उल्लेख है। विमल-उपाख्यान में आवश्यकनियुक्ति से प्रमाण उद्धत किया है। नारायणकथानक में यज्ञ में पशुमेध का उल्लेख है। हस्तितापसों का वर्णन है। अमरदत्त कथानक में सुगतशास्त्र का उल्लेख है। यहाँ सुश्रूषा का माहात्म्य बताया गया है। दशबल १. ईसवी सन् के पूर्व दूसरी शताब्दी में भरहुत कला में एक नाव का चित्रण मिलता है जिस पर तिमिंगल ने धावा बोल दिया है । चित्र में नाव से नीचे गिरते हुए यात्रियों को वह निगल रहा है। देखिये डॉक्टर मोतीचन्द, सार्थवाह, आकृति ९।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy