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________________ कथाकोषप्रकरण पाश में भर कर अपनी गोद में बैठा लिया | फिर भद्रा ने राजा को बहुमूल्य हाथी, घोड़े आदि की भेंट देकर बिदा किया। अन्त में शालिभद्र ने अपनी बधुओं के साथ महावीर के पास पहुँच कर श्रमण-दीक्षा ग्रहण कर ली। साधुदान का फल प्राप्त करनेवालों में शालिभद्र के सिवाय, कृतपुण्य, आर्या चन्दना, मूलदेव आदि की भी कथाएँ कही गई हैं । कृतपुण्य और मूलदेव की कथाओं के प्रसंग में वेश्याओं का वर्णन है। वेश्याओं की मातायें वाइया (हिन्दी में बाई) कही जाती थीं। मूलदेव के कथानक से मालूम होता है कि धनिक लोग गंडेरियों को कांटे (सूला) से खाते थे। सुन्दरीकथानक से पता चलता है कि मछुए, शिकारी आदि निम्न जाति के लोग जैनधर्म के अनुयायी अब नहीं रह गये थे; श्रेष्ठी, सार्थवाह, आदि मध्यम और उच्च श्रेणी के लोग ही प्रायः जैनधर्म का पालन करते थे। मनोरथकथानक में श्रमणोपासकों में परस्पर दानसंबन्धी चर्चा का उल्लेख है । हरिणकथानक में द्वारका नगरी के विनाश की कथा है । सुभद्राकथानक में बताया है कि सागरदत्त द्वारा जैनधर्म स्वीकार कर लेने के बाद ही सुभद्रा के माता-पिता ने अपनी कन्या का विवाह उसके साथ किया । यहाँ सासू-बहू तथा जैन और बौद्ध भिक्षुओं की पारस्परिक कलह का आभास मिलता है। मनोरमाकथानक में श्रावस्ती का राजा किसी नगर के व्यापारी की पत्नी को अपनी रानी बनाना चाहता है । वह सफल हो जाता है, लेकिन अन्त में देवताओं द्वारा मनोरमा के शील की रक्षा की जाती है। श्रेणिककथानक में राजा श्रेणिक को जैनशासन का परम उद्धारक बताया गया है। दत्तकथानक से पता लगता है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर साधुओं में काफी मनोमालिन्य पैदा हो गया था। दिगम्बर मतानुयायी किसी श्वेतांवर १. वादिदेवसूरि आदि के प्रबंधों में भी इस प्रकार के आख्यान मिलते हैं। सिद्धराज जयसिंह की सभा में इस बात को लेकर वादिदेवसूरि और भट्टारक कुमुदचन्द्र में शास्त्रार्थ हुआ था।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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