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________________ कुवलयमाला ४२७ यहाँ १८ देशी भाषाओं का उल्लेख है। ये भाषायें गोल्ल, आदि देशों में बोली जाती थीं। गोल्लदेश (गोदावरी के आसपास का प्रदेश) के लोग कृष्णवर्ण, निष्ठुर वचनवाले, बहुत काम-भोगी (बहुक-समरभुंजए) और निर्लज्ज होते थे; वे लोग 'अड्डे' का प्रयोग करते थे। मगध के वासी पेट निकले हुए (णीहरियपोट्ट), दुर्वर्ण, कद में छोटे (मडहए) तथा सुरतक्रीडा में तल्लीन रहते थे वे 'एगे ले' का प्रयोग करते थे। अंतर्वेदि (गङ्गा और यमुना के बीच का प्रदेश) प्रदेश के रहनेवाले कपिल रंग के, पिंगल नेत्रवाले तथा खान-पान और और गपशप में लगे रहनेवाले होते थे; वे 'कित्तो किम्मो' शब्द का प्रयोग करते थे। कीरदेशवासी ऊँची और मोटी नाकवाले, कनक वर्णवाले, और भारवाही होते थे; वे 'सरि पारि' का प्रयोग करते थे। ढक्कदेश के वासी दाक्षिण्य, दान, पौरुष, विज्ञान और दयारहित होते थे, वे 'एहं तेह' का प्रयोग करते थे । सिंधुदेश के लोग ललित, और मृदुभाषी, संगीतप्रिय और अपने देश को प्रिय समझते थे; वे 'चउडय' शब्द का प्रयोग करते थे। मरुदेशवासी वक्र, जड, उजड्डु, बहुभोजी, तथा कठिन, पीन और फूले हुए शरीरवाले होते थे; वे 'अप्पा तुप्पां' शब्दों का प्रयोग करते थे। गुर्जरदेशवासी घी और मक्खन खा-खा कर पुष्ट हुए, धर्मपरायण, सन्धि और विग्रह में निपुण होते थे। वे 'णउ रे भल्ल" शब्दों का प्रयोग करते थे । लाटदेश के वासी स्नान करने के पश्चात् सुगन्धित द्रव्यों का लेप करते, अपने बाल अच्छी तरह काढ़ते, और उनका शरीर सुशोभित रहता था; वे 'अम्हं काउं तुम्ह' शब्दों का प्रयोग करते थे। मालवा के लोग तनु, श्याम और छोटे शरीरवाले, क्रोधी, मानी और रौद्र होते थे; वे 'भाउय भइणी तुम्हे' शब्दों का प्रयोग करते थे। कर्णाटक के लोग उत्कट दर्पवाले मैथुनप्रिय, रौद्र और पतङ्गवृत्ति वाले होते थे; वे 'अडि पाडि मरे' १. ना रे, भलु आदि का गुजराती में प्रयोग होता है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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