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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास उत्तरापथ में तक्षशिला नाम की नगरी का वर्णन है। धर्मचक्र' से यह शोभित थी। सूर्यास्त के पश्चात् सन्ध्या का अभिनव वर्णन देखिये डज्झिर-तिल-धय - समिहा - तडतडा-सहइंमंत-जाय-मंडवेसु, गंभीरवेय-पढण-रवइं बंभण-सालिसु,मणहर-अक्खित्तया-गेयइं रद्दभवणेसु, गल्ल-फोडण-रवई धम्मिय-मढेसु, घंटा-डमरुय-सदइं कावालियघरेसु, तोडहिया-पुक्करियइं चचर-सिवेसु, भगवयगीयागुणणधणीओ आवसहासु, सब्भूयगुण-रइयइंथुइ-थोत्तइं जिणहरेसु, एयंत-करुणा-णिबद्धत्थई वयणई बुद्ध-विहारेसुं, चलिय-महल्लघंटाखडहडओ कोट्टज्जा-घरेसु, सिहि कुक्कुड-चडय-रवई छम्मुहालएसु, मणहर-कामिणी-गीय-मुरय-रवई तुंग-देवघरेसुं ति ।, -मंत्र-जाप के मंडपों में जलते हुए तिल, घी और काष्ठ के जलने का तड़तड़ शब्द, ब्राह्मणों की शालाओं में जोर-जोर से वेदपाठ का स्वर, रुद्रभवनों में मनोहर और आकर्षक गीतों का स्वर, धार्मिक मठों में गला फाड़कर पढ़ने का शब्द, कापालिकघरों में घंटा और डमरू का शब्द, चौराहों के शिवस्थानों में तोडहिआ नामक वाद्य का शब्द, संन्यासियों के मठों (आवसह) में भगवद्गीता को गुनने का शब्द, जिनमंदिरों में सर्वभूतगुणरचित स्तुति और स्तोत्रों का शब्द, बुद्ध-विहारों में करुणापूर्ण वचनों का शब्द, कोकिरिया (कोट्टजा-दुर्गा) के मंदिरों में बड़े-बड़े घंटों का शब्द, कार्तिकेय-मंदिरों में मयूर, कुक्कुट और चटक पक्षियों का शब्द, तथा ऊँचे-ऊँचे देवालयों में सुन्दर कामिनियों के गीतों और मृदंगों का शब्द सुनाई दे रहा था। इस प्रसंग पर रात्रि के समय एक ओर विदग्ध कामिनीजन का और दूसरी ओर संसार से वैराग्य भाव को प्राप्त साधुजनों की प्रवृत्तियों का एक ही श्लोक में साथ-साथ सुन्दर चित्रण किया गया है। कोई नायिका रात्रि के समय अपने पति से मिलने के लिए १. आवश्यकचूर्णी, पृ० १८० इत्यादि में इसकी कथा आती है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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