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________________ ४१४ प्राकृत साहित्य का इतिहास __“यदि मेरा यह आख्यान सत्य है तो इसे प्रमाणित करो, और यदि असत्य है तो सबके लिये भोजन का प्रबंध करो।" । ___ कंडरीक ने उत्तर दिया कि रामायण, महाभारत और पुराणों का ज्ञाता ऐसा कौन व्यक्ति है जो तुम्हारे इस आख्यान को असत्य सिद्ध कर सके। दूसरे आख्यान में कंडरीक ने अपना अनुभव सुनाया "एक बार की बात है, बाल्यावस्था में मेरे माता-पिता ने मुझे घर से बाहर निकाल दिया | घूमते-घामते मैं एक गाँव में पहुँचा। उस गाँव में एक वट का वृक्ष था, जिसके नीचे कमलदल नाम का एक यक्ष रहा करता था। यह यक्ष लोगों को इच्छित वर दिया करता था | यक्ष की यात्रा के लिये लोग फल-फूल आदि लेकर वहाँ आते । मैं भी यक्ष की वंदना के लिये गया। उस समय वहाँ घोड़ों का खेल हो रहा था कि इतने में चोरों का आक्रमण हुआ। यह देखकर गाँव के सब लोग और समस्त पशु भागकर एक फूट (चिब्भड' ) में छिप गये और अन्दर पहुँच कर क्रीड़ा करने लगे। चोर वहाँ किसी को न देखकर वापिस लौट गये। इतने में एक बकरी आई और वह फूट को खा गई। उस बकरी को एक अजगर निगल गया और अजगर को एक पक्षी खा गया। जब यह पक्षी वट वृक्ष के ऊपर बैठा हुआ था तो वहाँ राजा की सेना ने पड़ाव डाला। इस पक्षी का एक पैर नीचे की तरफ लटक रहा था। हाथी के महावत ने उसे वृक्ष की शाखा समझकर उससे अपने हाथी को बाँध दिया । पक्षी ने अपना पैर ऊपर खींचा तो उसके साथ हाथी भी खिंचा चला गया। यह देखकर सेना में कोलाहल मच गया। इतने में किसी तीरन्दाज ने पक्षी पर तीर चलाया जिससे पक्षी नीचे गिर पड़ा। राजा ने उसका पेट चिरवाया तो पहले उसमें से अजगर निकला, अजगर में से बकरी निकली, बकरी में से फूट निकली और फूट में से १. गुजराती में चीभईं।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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