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________________ ४१२ प्राकृत साहित्य का इतिहास सारथी-विलाप करने के सिवाय और कोई चारा नहीं। कुमार-वे लोग इसके साथ क्यों नहीं जाते ? सारथी-यह संभव नहीं। उसके संबंधियों को पता नहीं कि मृतक कहाँ जानेवाला है। कुमार-ये उससे प्रीति क्यों करते हैं ? सारथी-महाराज, आप ठीक कहते हैं, प्रीति करना वृथा है। अन्त में कुमार मृत्यु से बचने का उपाय पूछता है । सारथी उत्तर देता है कि धर्म धारण करने से ही मृत्यु से छुटकारा मिल सकता है। विवाह-विधि का यहाँ विस्तार से वर्णन है। अन्त में कर्मगति आदि संबंधी प्रश्नों के उत्तर दिये गये हैं। न धुत्तक्खाण (धूर्ताख्यान ) धूर्ताख्यान हरिभद्र की दूसरी उल्लेखनीय रचना है।' लेखक ने बड़े विनोदात्मक ढंग से रामायण, महाभारत और पुराणों की अतिरंजित कथाओं पर व्यंग्य करते हुए उनकी असार्थकता सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। हरिभद्र एक कुशल कथाकार थे। हास्य और व्यंग्य की इस अनुपम कृति से उनकी मौलिक कल्पनाशक्ति का पता लगता है। यह महाराष्ट्री प्राकृत में सरल और प्रवाहबद्ध शैली में लिखी गई है। इसमें पाँच आख्यान हैं। एक बार उज्जैनी के किसी उद्यान १. इसका सम्पादन डाक्टर ए० एन० उपाध्ये ने सिंघी जैन ग्रन्थमाला, बंबई में सन् १९४४ में किया है। निशीथविशेषचूर्णी (पीठिका, पृ० १०५) में धुत्तक्खाणग का उल्लेख मिलता है, इससे मालूम होता है कि हरिभद्र से पहले भी इस नाम का कोई ग्रंथ था । संघतिलकाचार्य ने संस्कृत धूर्ताख्यान की रचना की है जो राजनगर की जैनग्रन्थप्रकाशक सभा द्वारा सन् १९४५ में प्रकाशित हुआ है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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