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________________ वसुदेवहिण्डी ३९३ -शल्य का उद्धार करके और सब जीवों को अभयदान जो दम के मार्ग में सुस्थित हैं, उन्हें कुछ भी दुर्लभ नहीं लभ नहीं है। क्ष्वाकुवंश में कन्यायें प्रव्रज्या ग्रहण करती थीं। कुक्कुटग यहाँ वर्णन है । परदारदोष में वासव का उदाहरण दिया कामपताका नामक वेश्या श्राविका के व्रत ग्रहण कर में की उपासना करती थी। प्राणातिपातविरमण आदि व्रतों के गुण-दोष के उदाहरण दिये गये हैं। गोमंडलों न है जहाँ सुंदर और असुंदर गायों पर चिह्न बनाये जाते सगरपुत्रों ने अष्टापद के चारों ओर खाई खोदना चाहा । वे भस्म हो गये। अष्टापद तीर्थ की उत्पत्ति का नीस और बीसवाँ लंभन नष्ट हो गया है। केउमतीलभन तिजिन का चरित, त्रिविष्टु और वासुदेव का संबंध, तेज, सिरिविजय, असणिघोस और सतारा के पूर्वभवों न है। मेघरथ के आख्यान में जीवन की प्रियता को बताया हैहंतूण परप्पाणे अप्पाणं जो करेइ सप्पाणं । अप्पाणं दिवसाणं, करण नासेइ अप्पाणं ।। दुक्खस्स उव्वियंतो, हंतूण परं करेइ पडियारं। पाविहिति पुणो दुक्खं, बहुययरं तन्निमित्तेण ।। -जो दूसरे के प्राणों की हत्या करके अपने को सप्राण करना । है, वह आत्मा का नाश करता है। जो दुख से खिन्न दूसरे की हत्या करके प्रतिकार करता है, वह उसके ज से और अधिक दुख पाता है। थु और अरहनाथ के चरित का वर्णन है । अन्त में वसुदेव तुमती के साथ विवाह हो जाता है। पउमावंतीलंभन में कुल की उत्पत्ति का आख्यान है। देवकीलंभन में कंस भव का वर्णन है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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