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________________ सामान्य जीवन का चित्रण ३६७ और गर्विष्ठ थे, तथा सुंदर युवतियों पर दृष्टिपात करने के लिये लालायित रहा करते थे। समस्यापूर्ति द्वारा कुवलयमाला को प्राप्त करने के संबंध में उनमें जो पारस्परिक वार्तालाप होता है वह छात्रों की मनोवृत्ति का सुंदर चित्र उपस्थित करता है। व्यापारी लोग अपने प्रवहणों में विविध प्रकार का माल भर कर चीन, सुवर्णभूमि, और टंकण आरि सुदूर देशों की यात्रा करते थे । बेडिय ( बेडा),बेगड, सिल्ल (सित=पाल), आवत्त (गोल नाव), खुरप्प (होड़ी), बोहित्थ, खरकुल्लिय आदि अनेक प्रकार के प्रवहणों का उल्लेख यहाँ मिलता है । कुवलयमाला में गोल्ल, मगध, अंतर्वेदी, कीर, ढक्क, सिंधु, मरु, गुर्जर, लाट, मालवा आदि देशों के रहनेवाले वणिकों का उल्लेख है जो अपने अपने देशों की भाषाओं में बातचीत करते थे। गुणचन्द्रगणि ने वाराणसी नगरी का सुंदर वर्णन किया है। यहाँ के ठग उस समय भी प्रसिद्ध थे। सामान्य जीवन का चित्रण जैन प्राकृत-कथा-साहित्य में राजा, मंत्री, श्रेष्ठी, सार्थवाह, और सेनापति आदि केवल नायकों का ही नहीं, बल्कि भारतीय जनता के विभिन्न वर्गों के सामान्य जीवन का बड़ी कुशलता के साथ चित्रण किया गया है जिससे भारतीय सभ्यता के इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। हरिभद्रसूरि ने उपदेशपद में किसी सज्जन पुरुष के परिवार का बड़ा दयनीय चित्र खींचा है। उस बेचारे के घर में थोड़ा सा सत्तु, थोड़ा सा घी-शक्कर और थोड़ा सा दूध रक्खा हुआ था, लेकिन दुर्भाग्य से सभी चीजें जमीन पर बिखर गईं, और उसे फाके करने की नौबत आ पहुँची। ऐसी हालत में मित्रता करके, राजा की सेवा-टहल करके, देवता की आराधना करके, मंत्र की सिद्धि करके, समुद्रयात्रा करके तथा बनिज-व्यापार आदि द्वारा अपर्थोर्जिन करने को प्रधान बताया गया है (कुवलयमाला)। रत्नचूडचरित्र के कर्ता ने ईश्वरी नाम की सेठानी के कटु स्वभाव का बड़ा जीता
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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