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________________ कथाओं के रूप ३६१ के भेद से कथाओं को चार भागों में विभक्त किया है। अर्थोपार्जन की ओर अभिमुख करनेवाली कथा को अर्थकथा, काम की ओर प्रवृत्त करनेवाली कथा को कामकथा, क्षमामार्दव-आर्जव आदि सद्धर्म की ओर ले जानेवाली कथा को धर्मकथा; तथा धर्म, अर्थ और काम का प्रतिपादन करनेवाली, काव्य, कथा और अन्य के अर्थ का विस्तार करनेवाली, लौकिक और धार्मिकरूप में प्रसिद्ध तथा उदाहरण, हेतु और कारण से युक्त कथा को संकीर्णकथा कहा है। अधम, मध्यम और उत्तम के भेद से श्रोताओं के तीन भेद किये हैं। इस कृति में कुएँ में लटकते हुए पुरुष, तथा सर्प और मेढ़क के दृष्टांत द्वारा लेखक ने जीवन की क्षणभंगुरता का प्रतिपादन किया है, और निवृतिपुर (मोक्ष) में पहुँचने का मार्ग बताया में विभक्त किया है-आक्षेपणी, विक्षेपिणी, संवेदिनी और निर्वेदिनी । सुदंसणाचरिय के कर्ता देवेन्द्रसूरि को यही विभाजन मान्य है । मनोनुकूल विचित्र और अपूर्व अर्थवाली कथा को आक्षेपणी, कुशास्त्रों की ओर से उदासीन करनेवाली मन के प्रतिकूल कथा को विक्षेपिणी, ज्ञान की उत्पत्ति में कारण मन को मोक्ष की ओर ले जानेवाली कथ को संवेदिनी, तथा वैराग्य उत्पन्न करनेवाली कथा को निर्वेदिनी कथा कहा गया है। सिद्धर्षि की उपमितिभवप्रपंचकथा (प्रस्ताव १) भी देखिये। हेमचन्द्र आचार्य ने काव्यानुशासन ( ८.७-८) में आख्यायिका और कथा में अन्तर बताया है। आख्यायिका में उच्छ्वास होते हैं और वह संस्कृत गद्य में लिखी जाती है, जैसे हर्षचरित, जब कि कथा कभी गद्य में (जैसे कादम्बरी), कभी पद्य में (जैसे लीलावती) और कभी संस्कृत, प्राकृत, मागधी, शौरसेनी, पैशाची और अपभ्रंश भाषाओं में लिखी जाती है। उपाख्यान, आख्यान, निदर्शन, प्रवह्निका, मंथल्लिका, मणिकुल्या, परिकथा, खंडकथा, सफलकथा और बृहत्कथाये कथा के भेद बताये गये हैं। साहित्यदर्पण (६. ३३४-- ५) भी देखिये।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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