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________________ ३४८ प्राकृत साहित्य का इतिहास यशोविजय जी की टीकायें हैं । इसमें १६ प्रकरणों में धर्मपरीक्षा, देशना, धर्मलक्षण, लोकोत्तरतत्वप्रज्ञप्ति, प्रतिष्ठाविधि, पूजाफल, दीक्षाधिकार, समरस आदि का विवेचन है । पंचाशकप्रकरण पंचाशक' हरिभद्र की कृति है, इस पर अभयदेवसूरि की वृत्ति है। इसमें श्रावकधर्म, दीक्षा, चैत्यवन्दना, पूजाविधि, यात्राविधि, साधुधर्म, सामाचारी, पिंडविशुद्धि, आलोचनाविधि, साधुप्रतिमा, तपोविधि आदि का ५०-५० गाथाओं में वर्णन है। आद्यपंचाशक पर यशोदेवसूरि ने चूर्णी लिखी है। नवपदप्रकरण नवपदप्रकरण के कर्ता देवगुप्तसूरि हैं, ये जिनचन्द्र के नाम से प्रख्यात थे। इस पर इनकी श्रावकानंदी नाम की स्वोपज्ञ लघु वृत्ति है जो विक्रम संवत् १०७३ (सन् १०१६) में लिखी गई थी। यशोदेव उपाध्याय, देवेन्द्र, और कुलचन्द्र आदि विद्वानों ने भी इस प्रकरण पर वृत्ति लिखी है। इसमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और बारह व्रतों के संबंध में विवेचन किया गया है। सप्ततिशतस्थानप्रकरण इसके कर्ता सोमतिलक हैं। देवविजय जी ने इस पर टीका लिखी है। यहाँ १७० स्थानों में २४ तीर्थंकरों का वर्णन है। अन्य प्रकरण-ग्रन्थ इसके अतिरिक्त अन्य अनेकानेक प्रकरण-ग्रन्थों की रचना की गई। इनमें धर्मघोषसूरि का समवसरणप्रकरण, विजयविमल १. जैनधर्म प्रसारक सभा द्वारा सन् १९१२ में प्रकाशित । २. देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार ग्रंथमाला द्वारा सन् १९२७ में प्रकाशित । ३. जैन भारमानन्दसभा द्वारा वि० सं० १९७५ में प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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