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________________ प्रकरण-ग्रन्थ (च) प्रकरण-ग्रन्थ लघुग्रन्थ को प्रकरण कहते हैं। धर्मोपदेश देते समय साधुओं के लिये प्रकरण-ग्रन्थ बहुत उपयोगी होते हैं। संक्षिप्त होने से इन्हें कंठस्थ करने में भी बड़ी सुविधा रहती है। इसके अतिरिक्त जो साधु इन ग्रन्थों को पढ़े रहते थे, उनका आगमसिद्धांत में शीघ्र ही प्रवेश हो सकता था। जैनधर्मसंबंधी विविध विषयों का प्रतिपादन करने के लिये प्राकृत-साहित्य में अनेक प्रकरण-ग्रन्थ लिखे गये हैं। आत्मानन्द ग्रन्थरत्नमाला के संचालक मुनि चतुरविजय जी महाराज ने अनेक प्रकरणग्रन्थों का प्रकाशन किया है। जीवविचारप्रकरण इसके' कर्ता शांतिसूरि हैं। इसमें ५१ गाथाओं में जीव के स्वरूप का विचार है । रत्नाकरसूरि, ईश्वराचार्य और मेघनन्द आदि ने इस पर टीकायें लिखी हैं। नवतत्वगाथाप्रकरण इसमें ५३ गाथाओं में नवतत्वों का विवेचन है। इसके कर्ता देवगुप्त हैं। नवांगीकार अभयदेवसूरि ने इस पर भाष्य' और यशोदेव ने वृत्ति लिखी है। धर्मविजय ने सुमंगला नाम की टीका लिखी है। १. जीवविचार, नवतत्वदंडक, लघुसंघयणी, बृहत्संघयणी, त्रैलोक्यदीपिका, लघुक्षेत्रसमास और पट्कर्मग्रंथ ये प्रकरण-ग्रंथ श्रावक भीमसिंह माणेक की ओर से लघुप्रकरणसंग्रह नाम से संवत् १९५९ में प्रकाशित हुए हैं। २. आत्मानन्द जैनसभा द्वारा वि० सं० १९६९ में प्रकाशित । ३. मुक्तिकमल जैन मोहनमाला, भावनगर की ओर से सन् १९३४ में प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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