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________________ भावसंग्रह ३२१ राजा की मृत्यु के ७०५ वर्ष बाद कलश नामक किसी श्वेतांबर साधु ने यापनीय संघ की स्थापना की। वीरसेन के शिष्य आचार्य जिनसेन हुए, उनके पश्चात् विनयसेन और फिर उनके बाद आचार्य गुणभद्र हुए। विनयसेन ने कुमारसेन मुनि को दीक्षा दी। दीक्षा से भ्रष्ट होकर कुमारसेन ने मयूरपिच्छ का त्याग कर दिया और चमर (चमरी गाय के बालों की पिच्छी) ग्रहण कर वे बागड़ देश में उन्मार्ग का प्रचार करने लगे। उन्होंने स्त्रियों को दीक्षित करने का, क्षुल्लकों को वीरचर्या का, मुनियों को बड़े बालों की पिच्छी रखने का और रात्रिभोजन त्याग का उपदेश दिया। अपने आगम, शास्त्र, पुराण और प्रायश्चित्त ग्रंथों की उन्होंने रचना की। विक्रम राजा की मृत्यु के ७५३ वर्ष पश्चात उन्होंने नन्दीतट ग्राम में काष्ठासंघ की स्थापना की। इसके २०० वर्ष बाद (विक्रम राजा की मृत्यु के ६५३ वर्षे पश्चात् ) रामसेन ने मथुरा में माथुरसंघ चलाया । उसने पिच्छी धारण करने का सर्वथा निषेध किया। तत्पश्चात् वीरचन्द्र मुनि के सम्बन्ध में भविष्यवाणी की कि वह विक्रम राजा की मृत्यु के १८०० वर्ष पश्चात् दक्षिण देश में मिल्लकसंघ की स्थापना करेगा । वह अपना एक अलग गच्छ बनायेगा, अलग प्रतिक्रमण विधि चलायेगा और अलग-अलग क्रियाओं का उपदेश देगा। भावसंग्रह भावसंग्रह में दर्शनसार की अनेक गाथायें उद्धृत हैं। इसमें ७०१ गाथायें हैं। सबसे पहले स्नान के दोष बताते हुए स्नान की जगह तप और इन्द्रियनिग्रह से जीव की शुद्धि बताई है। फिर मांस के दूषण और मिथ्यात्व के भेद बताये गये हैं। चौदह गुणस्थानों के स्वरूप का यहाँ प्रतिपादन है। १. माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला द्वारा वि० सं० १९७८ में प्रकाशित भावसंग्रहादि में संगृहीत । २१ मा० सा०
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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