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________________ मूलाचार ३११ तपरूपी नगर का रक्षण किये जाने का उल्लेख है। द्वादशानुप्रेक्षा अधिकार में अनित्य, अशरण आदि बारह अनुप्रेक्षाओं का स्वरूप बताया है। समयसाराधिकार में शास्त्र के सार का प्रतिपादन करते हुए चारित्र को सर्वश्रेष्ठ कहा है। साधु के लिये पिच्छी को आवश्यक बताया है। जीवों की रक्षा के लिये यतना को सर्वश्रेष्ठ कहा हैप्रश्नः-कधं चरे कधं चिट्ठे कधमासे कधं सये । ___ कधं भुंजेज भासेज्ज कधं पावं ण बज्झदि ।। -किस प्रकार आचरण करे, कैसे उठे, कैसे बैठे, कैसे सोये, कैसे खाये, कैसे बोले जिससे पापकर्म का बन्ध न हो । उत्तर-जदं चरे जदं चिढ़े जदमासे जदं सये। जदं भुंजेज्ज भासेज्ज एवं पावं ण बज्झइ ॥ यत्नपूर्वक आचारण करे, यत्नपूर्वक उठे, यत्नपूर्वक बैठे, यन्नपूर्वक सोये, यत्नपूर्वक भोजन करे, यनपूर्वक बोले-इससे पापकर्म का बंध नहीं होता। पर्याप्ति अधिकार में छह पर्याप्तियों का वर्णन है। पर्याप्ति के संज्ञा, लक्षण, स्वामित्व, संख्यापरिमाण, निर्वृति और स्थितिकाल ये छह भेद बताये हैं । यहाँ गुणस्थानों और मार्गणाओं आदि का प्ररूपण है । शीलगुण नामक अधिकार में १८ हजार शील के भेदों का निरूपण है। १. दशवैकालिकसूत्र (४. ६-७) में ये गाथायें निम्नरूप में मिली हैं कहं चरे कहं चिठे, कहमासे कहं सये। कहं भुंजतो भासंतो, पावं कम्मं न बंधइ ॥ जयं चरे जयं चिठे जयमासे जयं सए । जयं भुंजतो भासंतो पावं कम्मं न बंधइ ॥ डॉक्टर ए. एम. घाटगे ने इण्डियन हिस्टोरिकल क्वार्टी, १९३५ में अपने 'दशवैकालिकनियुक्ति' नामक लेख में मूलाचार और दशवैकालिकनियुक्ति की गाथाओं का मिलान किया है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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