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________________ कसायपाहुड २७७ सेन आचार्य ने इन छहों खण्डों पर ७२ हजार श्लोकवला टीका की रचना की। आगे चलकर नेमिचन्द्र वक्रवर्ती ने पटखंडागम के उक्त खण्डों के आधार से र लिखा जिसे जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड नाम के दो में विभक्त किया गया । की दृष्टि से प्रस्तुत ग्रन्थ तीन भागों में विभक्त किया ना है। पहले पुष्पदन्ताचार्य के सूत्र, फिर वीरसेन की धवला टीका, और फिर इस टीका में उद्धृत गद्य ग्य प्राचीन उद्धरण | पुष्पदन्त के सूत्रों की संख्या १७७ की भाषा प्राकृत है। धवला टीका का लगभग तीन ग प्राकृत में और शेष भाग संस्कृत में है। टीका की व्यतया शौरसेनी है। शैली इसकी परिमार्जित और कसायपाहुड ( कषायप्राभृत) र्य धरसेन के समय के आसपास गुणधर नाम के आचार्य हुए, उन्हें भी द्वादशांग श्रुत का कुछ ज्ञान ने कषायप्रभृत नामके द्वितीय सिद्धांत-ग्रन्थ की रचना यमंक्षु और नागहस्ति' ने इस ग्रन्थ का व्याख्यान था आचार्य यतिवृषभ ने इस पर चूर्णिसूत्र लिखे। त के ऊपर भी वीरसेन ने टीका लिखी, किन्तु वे उसे श्लोकप्रमाण लिखकर ही बीच में स्वर्गवासी हो गये। ( कार्य को उनके सुयोग्य शिष्य आचार्य जिनसेन ने { ८३७ में पूर्ण किया। यही टीका जयधवला के नाम ती है; सब मिलाकर यह ६० हजार श्लोकप्रमाण । पड़ता है कषायप्राभूत के टीकाकार वीरसेन और के समक्ष आर्यमंक्षु और नागहस्ति नामक दोनों ताम्बरों की नन्दिसूत्र की स्थविरावलि में पहले आर्यमंक्षु, हन्दि और उसके बाद आर्य नागहस्ति का नाम आता है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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