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________________ २७५ पखंडागम की टीकाएँ षट्खंडागम की टीकाएँ षट्खंडागम जैसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ पर समय-समय पर अनेक टीकाएँ लिखी गई। इनमें कुंदकुंदाचार्यकृत परिकर्म, शामकुंडकृत पद्धति, तुम्बुल्लूराचार्यकृत चूडामणि, समंतभद्रस्वामीकृत टीका और बप्पदेवगुरुकृत व्याख्याप्रज्ञप्ति नामक टीकाएँ मुख्य हैं ; इन टीकाकारों का समय क्रमशः ईसवी सन् की लगभग दूसरी, तीसरी, चौथी, पाँचवीं और छठी शताब्दी माना जाता है। दुर्भाग्य से ये सभी टीकाएँ अनुपलब्ध हैं। षट्खंडागम पर सबसे महत्त्वपूर्ण टीका धवला है जिसके रचयिता वीरसेन हैं। इनके गुरु का नाम आर्यनन्दि है; आदिपुराण के कर्ता सुप्रसिद्ध जिनसेन आचार्य इनके शिष्य थे। जिनसेन ने अपने गुरु की सर्वार्थगामिनी नैसर्गिक प्रज्ञा को बहुत सराहा है। वीरसेन ने बप्पदेवगुरु की व्याख्याप्रज्ञप्ति टीका के आधार से चूर्णियों के ढंग की प्राकृत और संस्कृतमिश्रित ७२ हजार श्लोकप्रमाण धवला नाम की टीका लिखी। टीकाकार की लिखी हुई प्रशस्ति के अनुसार सन् ८१६ में यह टीका वाटग्रामपुर में लिखकर समाप्त हुई। धवला टीका के कर्ता वीरसेन बहुश्रुत विद्वान् थे और उन्होंने दिगम्बर और श्वेताम्बर आचार्यों के विशाल साहित्य का आलोडन किया था। सत्कर्मप्राभृत, कषायप्राभृत, सन्मतिसूत्र, त्रिलोकप्रज्ञप्तिसूत्र, पंचत्थिपाहुड, गृद्धपिच्छ आचार्य का तत्वार्थसूत्र, आचारांग (मूलाचार), पूज्यपादकृत सारसंग्रह, अकलंककृत तत्वार्थभाष्य, जीवसमास, छेदसूत्र, कर्मप्रवाद और दशकर्णीसंग्रह आदि कितने ही महत्वपूर्ण सिद्धांत-ग्रन्थों का उल्लेख वीरसेन की टीका में उपलब्ध होता है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय द्वारा मान्य आचारांग, बृहत्कल्पसूत्र, दशवैकालिकसूत्र, अनुयोगद्वार और आवश्यकनियुक्ति आदि की गाथायें भी इसमें उद्धृत हैं। बृहत्कल्पसूत्रगत (१.१ ) 'तालपलंब' सूत्र का यहाँ उल्लेख है । इसके अतिरिक्त टीकाकार ने जगह-जगह उत्तर-प्रतिपत्ति और दक्षिण-प्रतिपत्ति नाम की मान्यताओं का
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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