SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७२ प्राकृत साहित्य का इतिहास प्रज्ञप्ति, नाथधर्मकथा, उपासकाध्ययन, अंतःकृदशा, अनुत्तरोपपातिक दशा, प्रश्नव्याकरण, विपाकसूत्र और दृष्टिवाद । दृष्टिवाद के पाँच अधिकार है-परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत, और चूलिका | परिकर्म के पाँच भेद हैं-चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति और व्याख्याप्रज्ञप्ति।' सूत्र अधिकार में जीव तथा त्रैराशिकवाद, नियतिवाद, विज्ञानवाद,शब्दवाद, प्रधानवाद, द्रव्यवाद और पुरुपवाद का वर्णन है। प्रथमानुयोग में पुराणों का उपदेश है। पूर्वगत अधिकार में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य का कथन है ; इनकी संख्या १४ है । चूलिका के पाँच भेद है-जलगता, स्थलगता, मायागता, रूपगता और आकाशगता। दिगम्बर परम्परा के अनुसार द्वादशांग आगम का उच्छेद हो गया है, केवल दृष्टिवाद का कुछ अंश बाकी बचा है, जो षट्खंडागम के रूप में मौजूद है। दिगम्बर सम्प्रदाय में प्रकारान्तर से जैन आगम को चार भागों में विभक्त किया गया है। १ प्रथमानुयोग में रविषेण की पद्मपुराण, जिनसेन की १. चन्द्रप्रज्ञप्ति आदि प्रथम चार आगमों का श्वेताम्बर सम्प्रदाय के उपांगों में अन्तर्भाव होता है। व्याख्याप्रज्ञप्ति को पाँचवां अंग स्वीकार किया गया है। २. ग्यारहवें पूर्व को श्वेताम्बर परम्परा में अवंश (अवंध्य ) और दिगम्बर परम्परा में कल्लाणवाद कहा है। कहीं पूर्वो के अन्तर्गत वस्तुओं की संख्या में भी दोनों में मतभेद है। ३. श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार चूलिकाओं का पूर्वी में समावेश हो जाता है । दिगम्बरों के अनुसार उनका पूर्वी से कोई सम्बन्ध नहीं। ४. दिगम्बर परम्परा में षट्खंडागम और कषायप्राभूत ही ऐसे ग्रंथ हैं जिनका सम्बन्ध सीधा महावीर की द्वादशांग वाणी से है, शेष समस्त श्रुतज्ञान क्रमशः विलुप्त और छिन्न हुआ माना जाता है। विशेष के लिये देखिये, डाक्टर हीरालाल जैन, पखंडागम की प्रस्तावना, भाग १ ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy