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________________ २६४ प्राकृत साहित्य का इतिहास (५) दो मित्रों को एक खजाना मिला। उन्होंने सोचा, कल किसी अच्छे नक्षत्र में आकर इसे ले आयेंगे। लेकिन उनमें . से एक पहले ही वहाँ पहुँच कर खजाने को निकाल लाया और उसकी जगह उसने कोयले रख दिये। अगले दिन जब दोनों वहाँ आये तो देखा कोयले पड़े हुए हैं। यह देखकर धूर्त मित्र ने कहा-क्या किया जाये, हमलोग इतने अभागे हैं कि खजाने के कोयले हो गये ! दूसरा मित्र ताड़ गया, लेकिन उसने उस समय कुछ नहीं कहा । उसने उस धूर्त की एक मूर्ति बनाई और कहीं से वह दो बन्दर पकड़ लाया । वह उस मूर्ति के ऊपर खाना रख देता और बन्दर खाने के लिये मूर्ति के ऊपर चढ़ जाते । एक दिन भोजन तैयार करा कर वह अपने मित्र के दो पुत्रों को किसी बहाने से घर ले आया | उसने उन दोनों को छिपा दिया, और मित्र के पूछने पर कह दिया कि वे बन्दर बन गये हैं । जब धूर्त के लड़के वापिस नहीं मिले तो वह स्वयं अपने मित्र के घर आया। उसके मित्र ने उसे एक दिवाल के पास बैठाकर उसके ऊपर बन्दर छोड़ दिये। किलकारी मारते हुए बन्दर उसके सिर पर चढ़कर कूदनेफांदने लगे। इन बन्दरों की ओर इशारा कर के धूर्त के मित्र ने कहा-ये ही तुम्हारे पुत्र हैं । धूत ने पूछा-लड़के बन्दर . कैसे बन गये ? उसने उत्तर दिया-जैसे खजाने का रुपया कोयला बन गया । यह सुनकर धूर्त ने खजाने का हिस्सा उसे दे दिया। (६) किसी साधु के पास एक बहुत मूल्यवान कचोलक (एक पात्र) था। उसने कहा-जो कोई मुझे अनसुनी बात सुनायेगा, उसे मैं यह कचोलक दे दूंगा। यह सुनकर एक सिद्धपुत्र ने गाथा पढ़ी तुझ पिया मज्म पिउणो धारेइ अणूणयं सयसहसं । जइ सुयपुव्वं दिज्जउ अह ण सुयं खोरगं देहि ।। -तेरे पिता को मेरे पिता का शतसहस्र से अधिक (कर्ज)
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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