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________________ दशवैकालिकचूर्णी लिया। उसने कहा-यदि मैं तुम्हारी ये गाड़ीभर ककड़ियाँ खा लूं तो क्या दोगे ? ककड़ीवाले ने उत्तर दिया-मैं एक इतना बड़ा लड्डु दूंगा जो इस नगर के द्वार से न निकल सके । धूर्त ने कहा-बहुत अच्छी बात है, मैं इन सब ककड़ियों को अभी खा लेता हूँ। इसके बाद धूर्त ने कुछ गवाह बुला लिये | धूर्त ने ककड़ियों को थोड़ी-थोड़ी सी चखकर वहीं वापिस रख दी, और वह लड्डू मांगने लगा। ककड़ीवाले ने कहा-तुमने ककड़ियाँ खाई ही कहाँ हैं जो तुम्हें लड्डू दूं। धूर्त ने जबाब दिया कि ऐसी बात है तो तुम इन्हें बेचकर देखो। इतने में बहुत से ककड़ी खरीदनेवाले आ गये। कुतरी हुई ककड़ियाँ देखकर वे कहने लगे-ये तो खाई हुई ककड़ियाँ हैं, इन्हें क्यों बेचते हो ? इसके बाद दोनों न्यायालय में फैसले के लिए गये । धूर्त जीत गया। उसने लड्डू मांगा | ककड़ीवाले ने उसको बहुत मनाया, लेकिन वह न माना। धूर्त ने जानकार लोगों से पूछा कि क्या करना चाहिए | उन्होंने ककड़ीवाले से कहा कि तुम एक छोटे से लड्डू को नगर के द्वार पर रख कर कहो कि यह लड्डू कहने से भी नहीं चलता है, फिर तुम इस लड्डू को धूर्त को दे देना। • सुबंधु के आख्यान में यहाँ चाणक्य के इंगिनिमरण का वर्णन है । विद्या मंत्रसंबंधी जोणीपाहुड नामक ग्रन्थ का उल्लेख है। नन्दीचूर्णी नन्दीचूर्णी में माथुरी वाचना का उल्लेख आता है। बारह वर्षे का अकाल पड़ने पर आहार आदि न मिलने के कारण जैन भिक्षु मथुरा छोड़ कर अन्यत्र विहार करने गये थे। सुभिक्ष होने पर समस्त साधु-समुदाय आचार्य स्कंदिल के नेतृत्व में मथुरा में एकत्रित हुआ और जो जिसे स्मरण था उसे कालिकश्रुत के रूप में संघटित कर दिया गया। कुछ लोगों का कथन है
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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