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________________ आवश्यकचूर्णी में वे पारंगत थे। एक बार जब वे दक्षिणापथ में विचरण कर ' रहे थे, तो वहाँ दुर्भिक्ष पड़ा और अपनी विद्या के बल से पिंड लाकर वे भिक्षुओं को खिलाने लगे | आर्यरक्षित को उन्होंने दृष्टिवाद का अध्ययन कराया | उनके एक शिष्य का नाम वज्रसेन था जो विहार करते हुए सोपारय नगर (सोपारा, जिला ठाणा ; बम्बई) में आये | आर्यरक्षित ने मथुरा में विहार किया था | दशार्णभद्र नगर का वर्णन यहाँ किया गया है। तत्पश्चात् चेलना का हरण, कूणिक की उत्पत्ति, सेचनक हाथी की उत्पत्ति, और कूणिक का युद्ध, महेश्वर की उत्पत्ति आदि प्रसंगों का वर्णन है। वैशाली को पराजित करने के लिए कृणिक को मागधिया नाम की गणिका की सहायता लेनी पड़ी। चेटक पुष्करिणी में प्रवेश करके बैठ गया। उसने कूणिक से कहा, जब तक मैं पुष्करिणी से न निकलं, नगरी का ध्वंस न करना। बाद में महेश्वर ने वैशालीवासियों को नेपाल ले जाकर उनकी रक्षा की। यहाँ श्रेणिक के पुत्र अभयकुमार की बुद्धिमत्ता की अनेक कथायें वर्णित हैं जो पालि साहित्य के महोसध पंडित की कथाओं से मिलती हैं, और आगे चल कर मुगलकाल में इन्हीं कथाओं में से अनेक कथायें बीरबल के नाम से प्रचलित हुईं। कूणिक के पुत्र उदायी ने पाटलिपुत्र बसाया। उसके कोई पत्र नहीं था, इसलिए उसका राज्य एक नापितदास को मिला । वह नन्द नाम का राजा कहलाया । शकटाल और वररुचि का वृत्तांत तथा स्थूलभद्र की दीक्षा आदि का यहाँ विस्तार से वर्णन किया गया है। संयत्त की परिष्ठापना-विधि का विस्तार से प्रतिपादन है। इस सम्बन्ध की गाथायें बृहत्कल्पभाष्य और शिवकोटि आचार्य की भगवतीआराधना की गाथाओं से मिलती-जुलती हैं । लाट १. पाटलिपुत्र की उत्पत्ति के लिए देखिए पेञ्जर द्वारा संपादित सोमदेव का कथासरित्सागर, जिल्द १, अध्याय ३, पृष्ठ १८ इत्यादि; महावग्ग पृष्ठ २२६-३०; उदान की अट्ठकथा, पृष्ठ ४०७ इत्यादि।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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