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________________ आवश्यकचूर्णी पुत्र वहाँ आया और वृक्ष की छाया में बैठ गया। वृक्ष के पत्तों को छिदे हुए देखकर उसने पूछा कि इन पत्तों में किसने छेद किये हैं ? ग्वाले ने उत्तर दिया-"मैंने ।" राजपुत्र ने उसे बहुत से धन का लोभ दिलाकर पूछा-"क्या तुम जिसकी मैं कहूँ उसकी आँखें फोड़ सकते हो ?" ग्वाले ने उत्तर दिया कि अभ्यास से सब सम्भव है। तत्पश्चात् राजपुत्र ने उसे राजमार्ग के पास एक घर में बैठा दिया। राजा उस मार्ग से रोज अश्वक्रीड़ा के लिये जाता था। ग्वाले ने कमान में गोलियाँ लगाकर राजा की आँखों का निशाना लगाया जिससे उसकी आँखें फूट गई । राजपुत्र को राजा का पद मिल गया । आवश्यकचूर्णी आवश्यकचूर्णी के कर्ता जिनदासगणि महत्तर माने जाते हैं। सूत्रकृतांग आदि चूर्णियों की भाँति इस चूर्णी में केवल शब्दार्थ का ही प्रतिपादन नहीं है, बल्कि भाषा और विषय की दृष्टि से निशीथचूर्णी की तरह यह एक स्वतन्त्र रचना मालूम होती है। यहाँ ऋषभदेव के जन्ममहोत्सव से लेकर उनकी निर्वाणप्राप्ति तक की घटनाओं का विस्तार से वर्णन है । जैन परम्परा के अनुसार उन्होंने ही सर्वप्रथम अग्नि का उत्पादन करना सिखाया और शिल्पों (कुंभकार, चित्रकार, वस्त्रकार, कर्मकार और काश्यप ये पाँच मुख्य शिल्पी बताये गये हैं ) की शिक्षा दी। उन्होंने अपनी कन्या ब्राह्मी को दाहिने हाथ से लिखना और सुंदरी को बायें हाथ से गणित करना सिखाया, भरत को चित्रविद्या की शिक्षा दी तथा दण्डनीति प्रचलित की। कौटिल्य अर्थशास्त्र की उत्पत्ति भी इसी समय से बताई गई है। ऋषभ के निर्वाण के पश्चात् अष्टापद (कैलाश) पर्वत पर स्तूपों का १. रतलाम से सन् १९२८ में दो भागों में प्रकाशित । प्रोफेसर अर्नेस्ट लॉयमन ने आवश्यकचूर्णी का समय ईसवी सन् ६००-६५० स्वीकार किया है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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