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________________ प्राकृत और संस्कृत है। अपभ्रंश अपने पूर्ण विकास पर तभी पहुँच सका जब कि मध्ययुगीन प्राकृत को वैयाकरणों ने जटिल नियमों में बाँध कर आगे बढ़ने से रोक दिया। पहले प्राकृत भाषायें भी इसी प्रकार अपनी उन्नति के शिखर पहुंची थीं जब कि बोलचाल की भाषाओं ने साहित्यिक संस्कृत का रूप धारण कर लिया था। अस्तु, ईसवी सन् की बारहवीं शताब्दी में हेमचन्द्र ने अपने प्राकृतव्याकरण में जो अपभ्रंश के उदाहरण दिये हैं उनसे पता लगता है कि हेमचन्द्र के पूर्व ही अपभ्रंश भाषा अपने उत्कर्ष पर पहुंच चुकी थी। प्राकृत और संस्कृत __पहले कतिपय विद्वानों का मत था कि प्राकृत की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है' और प्राकृत संस्कृत का ही बिगड़ा हुआ (अपभ्रंश) रूप है, लेकिन अब यह मान्यता असत्य सिद्ध हो चुकी है | पहले कहा जा चुका है, आर्यभाषा का प्राचीनतम रूप हमें ऋग्वेद की ऋचाओं में मिलता है। दुर्भाग्य से आर्यों की बोलचाल का ठेठ रूप जानने के लिये हमारे पास कोई साधन नहीं है। लेकिन वैदिक आर्यों की यही सामान्य बोलचाल जो ऋग्वेद की संहिताओं की साहित्यिक भाषा से जुदा है, प्राकृत का मूलरूप है। १.देखिये हेमचन्द्र का प्राकृतव्याकरण (१.१की वृत्ति) प्रकृतिः संस्कृतम् । तत्र भवं तत आगतं वा प्राकृतम् । २. पिशल ने 'प्राकृत भाषाओं का व्याकरण', अनुवादक डॉक्टर हेमचन्द्र जोशी, विहार-राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, १९५८ (पृष्ठ ८-९) में प्राकृत और वैदिक भाषाओं की समानता दिखाई है-त्तण (वैदिक त्वन), स्त्रीलिंग पठी के एकवचन का रूप आए (वैदिक आर्य), तृतीया का बहुवचन रूप एहिं (वैदिक एभिः), आज्ञावाचक होहि (वैदिक बोधि), ता, जा, एस्थ (वैदिक तात्, यात्, इत्था), अम्हे (वैदिक अस्मे ), वग्गूहिं (वैदिक वग्नुभिः), सद्धिं (वैदिक
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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