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________________ चूर्णी-साहित्य आचारांगचूर्णी परंपरा से आचारांग चूर्णी के कर्ता जिनदासगणि महत्तर माने जाते हैं। यहाँ अनेक स्थलों पर नागार्जुनीय वाचना की साक्षीपूर्वक पाठभेद प्रस्तुत करते हुए उनकी व्याख्या की गई है। बीच-बीच में संस्कृत और प्राकृत के अनेक लौकिक पद्य उद्धृत हैं। प्रत्येक शब्द को स्पष्ट करने के लिए एक विशिष्ट शैली अपनाई गई है। मूअ, खुज और वडम आदि शब्दों के अर्थ को प्राकृत में ही समझाया है बहिरंतं ण सुणेति, मृतो तिविहो-जलमूतओ, एलमूतओ मम्मणो त्ति । खुजो वामणो । वडभे त्ति जस्स वडभं पिट्ठीए णिग्गतं । सामो कुट्ठी । सबलत्तं सिति । सह पमादेणं ति कारणे कज्जुवयारा भणितं सकम्मेहि । थुल्लसार का अर्थ थुल्लसारं भेंडं एरंडकडं वा, जस्स वा जं सरीरं थल्लं ण किंचि विण्णाणं अत्थि सो थुल्लसार एव । केवलं भारसारो पत्थरो वइरा ति | मज्झसारो खइरो | देससारो अंबो | ग्राम आदि की परिभाषायें अट्ठारसहं करभराणं गंमो गमणिज्जो वा गामो, गसति बुद्धिमादिगुणे वा गामो । ण एत्थ करो विज्जतीति नगरं । खेडं पंसुपागारवेलु | कब्बडं णाम थुल्लओ जस्स पागारो। मडंबं जस्स अड्ढाइजेहिं गाउएहिं णस्थि गामो। पट्टणं जलपट्टणं थलपट्टणं च । जलपट्टणं जहा काणणदीवो, थलपट्टणं जहा महुरा | आगरो १. रतलाम की ऋषभदेव केशरीमलजी श्वेताम्बर संस्था द्वारा सन् १९४१ में प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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