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________________ बृहत्कल्पभाष्य २२३ कीचड़ सूखने लगे, रास्तों का पानी कम हो जाये, जमीन की मिट्टी कड़ी हो जाये और जब पथिक परदेश जाने लगें तो साधुओं के विहार का समय समझना चाहिये । चार प्रकार के चैत्य गिनाये गये हैं-साधर्मिक, मंगल, शाश्वत और भक्ति । मथुरा में नये घरों का निर्माण करने पर उनके उत्तरंगों में अर्हत् भगवान की प्रतिमा स्थापित की जाती थी। रुग्ण साधु की वैद्य द्वारा चिकित्सा कराने का विस्तार से उल्लेख है। यहाँ पर टीकाकार ने दक्षिणापथ के काकिणी, मिल्लमाल के द्रम्म और पूर्व देश के दीनार अथवा केतर (केवडिक) नाम के सिक्कों का उल्लेख किया है। निर्ग्रन्थिनियों के विहार का विस्तृत वर्णन है। ___ तीसरे भाग में बृहत्कल्प सूत्र के प्रथम उद्देश के १०-५० सूत्र हैं जिन पर २१२५-३२८६ गाथाओं का भाष्य है । इनमें वगडा, आपणगृहादि, अपावृतद्वार उपाश्रय, घटीमात्रक, चिलिमिलिका, दकतीर, चित्रकर्म, सागारिकनिश्रा, सागारिकोपाश्रय, प्रतिबद्धशय्या,गृहपतिकुलमध्यवास, व्यवशमन, चार, वैराज्य-विरुद्धराज्य, अवग्रह, रात्रिभक्त, रात्रिवस्त्रादिग्रहण, हरियाहडिया, अध्वगमन, संखड़ी, विचारभूमि-विहारभूमि और आर्यक्षेत्र की व्याख्या की गई है। काम की दस अवस्थाओं का वर्णन है। कोई साध्वी किसी साधु को दुर्बल देख कर उससे दुर्बलता का कारण पूछती है। साधु उत्तर देता है संदसणेण पीई, पीईउ रईउ वीसंभो। वीसंभाओ पणओ, पंचविहं वड्ढए पिम्मं ॥ जह जह करेसि नेह, तह तह नेहो मे वड्ढंइ तुमम्मि | तेण नडिओ मि बलियं, जं पुच्छसि दुब्बलतरो त्ति ॥ -दर्शन से प्रीति उत्पन्न होती है, प्रीति से रति, रति से विश्वास और विश्वास से प्रणय उत्पन्न होता है, इस तरह प्रेम पाँच प्रकार से बढ़ता है। जैसे जैसे मैं स्नेह करता हूँ वैसे वैसे
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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