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________________ २१० प्राकृत साहित्य का इतिहास ने इसकी रचना की थी। यह एक न्यायशास्त्र की कृति थी।' आजकल यह भी उपलब्ध नहीं है । आराधनाणिज्जुत्ति ( आराधनानियुक्ति) वट्टकेर ने अपने मूलाचार में मरणविभक्ति आदि सूत्रों के साथ आराधनानियुक्ति का उल्लेख किया है। इस नियुक्ति के संबंध में और कुछ ज्ञात नहीं है। १. बृहत्कल्पभाष्य ५, ५४७३, १४५२, निशीथचूर्णी (साइक्लो इस्टाइल प्रति पृष्ठ ६९९-७३९) आवश्यकचूर्णी (पृष्ठ ३१) में 'तमि मणितं' कहकर गोविन्दणिज्जुत्ति का उद्धरण दिया है-जस्स अहिसंधारणपुग्विगा करणसत्थी अस्थि सो सन्नी लन्भति, अहिसंधारणपुग्विया णाम मणसापुज्वापरं संचितिऊण जा पवित्ती निवत्ती वा सा अहिसंधारणपुग्विगा करणसत्ती भण्णति, सा य जेसिं अस्थि ते जीवा जं सई सोऊण चुज्झति तं हेउगोवएसेण सपिणसुयं भण्णति ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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