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________________ उत्तराध्ययननियुक्ति २०३ दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति दशाश्रुतस्कंध जितना लघु है उतनी ही लघु उस पर नियुक्ति लिखी गई है। आरंभ में प्राचीनगोत्रीय अंतिम श्रुतकेवली तथा दशा, कल्प और व्यवहार के प्रणेता भद्रबाहु को नमस्कार किया है। दशा, कल्प और व्यवहार का यहाँ एक साथ कथन है। परिवसण, पज्जुसण, पज्जोसमण, वासावास, पढमसमोसरण, ठवणा आदि पर्यायवाची शब्द हैं। अज्ज मंगू का यहाँ उल्लेख है। उत्तराध्ययननियुक्ति उत्तराध्ययन सूत्र पर भद्रबाहु ने ५५६ गाथाओं में नियुक्ति की रचना की है। शान्त्याचार्य ने उत्तराध्ययन सूत्र के साथसाथ नियुक्ति पर भी टीका लिखी है। नियुक्ति-गाथाओं का अर्थ लिखकर उसका भावार्थ वृद्धसम्प्रदाय से अवगत करने का उल्लेख है और जहाँ कहीं टीकाकार को इस सम्प्रदाय की परंपरा उपलब्ध नहीं हुई वहाँ उन्होंने नियुक्ति की गाथाओं की टीका नहीं लिखी है (उदाहरण के लिये देखिये ३५५-५६ गाथायें)। इस नियुक्ति में गंधार श्रावक, तोसलिपुत्र आचार्य स्थूलभद्र, स्कंदकपुत्र, कृषि पाराशर, कालक, तथा करकंडू आदि प्रत्येकबुद्ध, तथा हरिकेश, मृगापुत्र आदि की कथाओं का उल्लेख किया है। आठ निह्नवों का विस्तार से विवेचन है । भद्रबाहु के चार शिष्यों द्वारा राजगृह में वैभार पर्वत की गुफा में शीत-समाधि ग्रहण किये जाने, तथा मुनि सुवर्णभद्र के मच्छरों का घोर उपसर्ग (मशक-परिपीत-शोणित-मच्छर जिनके शोणित को चूस गये हों) सहन कर कालगत होने का कथन है। कंबोज के घोड़ों का यहाँ उल्लेख है। कहीं-कहीं मनोरंजक उक्तियों के रूप में मागधिकायें भी मिल जाती हैं। किसी नायिका का पति कहीं अन्यत्र रात बिताकर आया है और दिन चढ़ जाने
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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