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________________ १९१ अनुयोगदार चीरिक, चर्मखंडिअ, भिक्खोण्ड, पांडुरंग, गौतम, गोबतिक, गृहिधर्म, धर्मचिन्तक, विरुद्ध और वृद्धों का उल्लेख है। अनुयोगद्वारचूर्णी में इनकी व्याख्या की गई है। पांच प्रकार के सूत्रों में अंडय, बोंडय, कीडय, बालज, और किट्टिस के नाम गिनाये हैं। मिथ्याशास्त्रों में नन्दी में उल्लिखित महाभारत, रामायण आदि गिनाये गये हैं; एक वैशिक अधिक है । आगम, लोप, प्रकृति और विकार का प्रतिपादन करते हुए व्याकरणसम्बन्धी उदाहरण दिये हैं। समास, तद्धित, धातु और निरुक्ति का विस्तृत विवेचन है । पाखण्डियों में श्रमण, पांडुरंग, भिक्षु, कापालिक, तापस और परिव्राजक का उल्लेख है। कर्मकारों में १. इनके अर्थ के लिये देखिये जगदीशचन्द्र जैन, लाइफ इन ऐशियेण्ट इण्डिया, पृष्ट २०६-७॥ २. सूत्रकृतांगटीका (४, १, २०, पृष्ठ १११) में वैशिक का अर्थ कामशास्त्र किया है जिसका अध्ययन करने के लिए लोग पाटलिपुत्र जाया करते थे। सूत्रकृतांगचूर्णी (पृष्ठ १४०) में वैशिक का एक वाक्य उद्धृत किया है-दुर्विज्ञयो हि भावः प्रमदानाम् । निम्नालेखित श्लोक भी उद्धृत है एता हसंति च रुदंति च अर्थहेतोः । विश्वासयंति च नरं न च विश्वसंति ॥ स्त्रियः कृतार्थाः पुरुषं निरर्थक। निष्पीलितालक्तकवत् त्यति ॥ भरत के नाट्यशास्त्र में वैशिक नामका २३ वां अध्याय है । ललितविस्तर (पृष्ठ १५६ ) में भी वैशिक का उल्लेख है। दामोदर के कुट्टिनीमत (श्लोक ५०४ ) में दत्त को वैशिक का कर्ता बताया है। ३. निशीथचूर्णी, (पृष्ठ ८६५) के अनुसार गोशाल के शिष्य पांडुरभितु कहे जाते थे। धम्मपद-अट्ठकथा (४, पृष्ठ ८) में भी इनका उल्लेख है। ४. प्रज्ञापना ( १, ३७ ) में कर्म और शिल्प,आर्यों का उल्लेख किया गया है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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