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________________ यवहार आदि से वस्तु ग्रहण करने के संबंध में नियमों का प्रतिपादन किया है । यहाँ भिक्षुप्रतिमा और मोकप्रतिमा का विवेचन है । दसवें उद्देशक में ३४ सूत्र हैं। इसमें यवमध्यचन्द्रप्रतिमा और वज्रमध्यप्रतिमा का वर्णन है | आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत नाम के पाँच प्रकार के व्यवहार का उल्लेख है। चार प्रकार के पुरुष, चार आचार्य और चार अन्तेवासियों का उल्लेख है। स्थविर तीन प्रकार के होते हैं-जाति, श्रुत और पर्याय | साठ वर्ष का जातिस्थविर, श्रुत का धारक श्रुतस्थविर, तथा बीस वर्ष की पर्यायवाला साधु पर्यायस्थविर कहा जाता है । निम्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थिनी को दाढ़ी-मूंछ आने के पूर्व आचारप्रकल्प (निशीथ) के अध्ययन का निषेध है। तीन वर्ष का दीक्षाकाल समाप्त होने पर आचारप्रकल्प नामक अध्ययन, चार वर्ष समाप्त होने पर सूयगडंग, पाँच वर्ष समाप्त होने पर दशा-कल्प-व्यवहार, आठ वर्ष समाप्त होने पर ठाणांग और समवायांग, दस वर्ष समाप्त होने पर वियाहपण्णत्ति, ग्यारह वर्ष समाप्त होने पर क्षुल्लिकाविमानप्रविभक्ति, महतीविमानप्रविभक्ति ( यहाँ विमानों का विस्तृत वर्णन किया गया है), अंगचूलिका ( उपासकदशा आदि की चूलिका ), वर्गचूलिका, और व्याख्याप्रज्ञप्तिचूलिका नाम के अध्ययन, बारह • वर्ष समाप्त होने पर अरुणोपपात, गरुडोपपात,' वरुणोपपात, चैश्रमणोपपात, और वेलंधरउपपात नामक अध्ययन, तेरह वर्ष समाप्त होने पर उत्थानश्रुत, समुत्थान-श्रुत, देवेन्द्रउपपात, नाग और परियापनिका, चौदह वर्ष समाप्त होने पर स्वप्नभावना अध्ययन, पन्द्रह वर्ष समाप्त होने पर चारणभावना अध्ययन, सोलह वर्ष समाप्त होने पर तेजोनिसर्ग अध्ययन, सत्रह वर्ष समाप्त होने पर आशीविषभावना अध्ययन, अठारह वर्ष समाप्त होने पर दृष्टिवाद नामक अग और बीस वर्ष समाप्त होने पर सर्व सूत्रों के पठन का अधिकारी होता है | यहाँ दस प्रकार के वैयावृत्य का उल्लेख है। १. गुणचन्द्रगणि के कहारयणकोस में इस सूत्र का उल्लेख है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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