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________________ ववहार योग्य है। बीमार हो जाने पर आचार्य-उपाध्याय दूसरे से कहें कि मेरे कालगत हो जाने पर अमुक व्यक्ति को यह पद दिया जाये। लेकिन यदि वह व्यक्ति योग्य हो तो ही उसे वह पद देना चाहिये, अन्यथा नहीं । यदि बहुत से साधर्मिक एक साथ विचरने की इच्छा करें तो स्थविरों से बिना पूछे ऐसा नहीं करना चाहिये । यदि ऐसा करें तो छेद अथवा परिहार तप का प्रायश्चित्त ग्रहण करना चाहिये। ___ पाँचवें उद्देशक में २१ सूत्र हैं । हेमन्त और ग्रीष्म में प्रवर्तिनी साध्वी को दो के साथ और गणावच्छेदिका को तीन के साथ विहार करना चाहिये । वर्षावास में प्रवर्तिनी को तीन के साथ और गणावच्छेदिका को चार के साथ विहार करने का विधान है । कोई तरुण निम्रन्थ अथवा निम्रन्थिनी यदि आचारप्रकल्प (निशीथ) भूल जाये तो उसे जीवनपर्यन्त आचार्यपद अथवा प्रवर्तिनी पद देने का निषेध है। एक साथ भोजन आदि करनेवाले निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थिनियों को एक दूसरे के समीप आलोचना करने का निषेध है। यदि रात्रि अथवा विकाल में किसी निर्ग्रन्थ को साँप (दीहपट्ट) काट ले तो साध्वी से औषधोपचार कराने का विधान है। छठे उद्देशक में ११ सूत्र हैं। स्थविरों से बिना पूछे अपने सगे-सम्बन्धियों के घर भिक्षा के लिये जाने का निषेध है, अन्यथा छेद अथवा परिहार का विधान है। ग्राम आदि में एक द्वारवाले स्थल में बहुत से अल्पश्रुतधारी भिक्षुओं के रहने का निषेध है । आचारप्रकल्प के ज्ञाता साधुओं के साथ रहने का विधान है। जहाँ बहुत से स्त्री-पुरुप स्नान करते हों वहाँ यदि कोई श्रमण निर्ग्रन्थ किसी छिद्र की सहायता से अथवा हस्तकर्म का सेवन कर वीर्यपात करे तो उसके लिये एक मास के अनुद्धाती परिहार तप के प्रायश्चित्त का विधान है। ___ सातवें उद्देशक में ११ सूत्र हैं। एक आचार्य की मर्यादा में रहनेवाले निम्रन्थ अथवा निम्रन्थिनियों को पीठ पीछे व्यवहार बन्द
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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