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________________ निसीह करने का निषेध है | अरण्य में साथ लेकर चलनेवाले आरण्यकों के अशन-पान के भक्षण का निषेध है। संयमी को असंयमी और असंयमी को संयमी कहने का निषेध है। लड़ाई-झगड़ा करनेवाले तीर्थकों के अशन-पान आदि ग्रहण करने का निषेध (भाष्यकार ने यहाँ सात निह्नवों का प्रतिपादन किया है ) है। दस्यु (क्रोध में आकर जो अपने दाँतों से काट लेते हों-दसणेहिं दसति तेण दसू-भाष्यकार), अनार्य, म्लेच्छ (अस्फुट भाषा बोलनेवाले-मिल्लक्खूऽव्यत्तभासी-भाष्यकार) और प्रत्यंत देशवासियों के जनपदों में विहार करने का निषेध ( यहाँ मगध, कौशांबी, थूणा और कुणाला आदि को छोड़कर बाकी देशों की गणना अनार्य देशों में की गई है ) है। दुगुंछिय (जुगुप्सित) कुलों में अशन, पान, वस्त्र, कंबल, आदि ग्रहण करने का निषेध है। अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थों के साथ भोजन ग्रहण करने का निषेध है। आचार्य-उपाध्याय की शय्या और संस्तारक को पैर लग जाने पर हाथ से बिना छुए नमस्कार न करने से भिक्षु दोष का भागी होता है। प्रमाण और गणना से अधिक उपधि रखने का निषेध है। सत्रहवें उद्देशक में १५१ सूत्र हैं जिन पर ५६०४-५६६६ गाथाओं का भाष्य है। कौतूहल से त्रस जीवों को रस्सी आदि से बाँधने का निषेध है। यहाँ अनेक प्रकार की मालाओं, धातुओं, आभूषणों, विविध वस्त्र, कंबलों आदि के उपभोग करने का निषेध किया गया है। निम्रन्थ और निम्रन्थिनी को अन्यतीर्थिक तथा गृहस्थ से पाद आदि परिमर्दन आदि कराने का निषेध है। भिक्षु को गाने, बजाने, नाचने और हँसने आदि का निषेध है। यहाँ वीणा आदि अनेक वाद्यों का उल्लेख किया गया है। __ अठारहवें उद्देशक में ७४ सूत्र हैं जिन पर ५६६७-६०२७ गाथाओं का भाष्य है। निष्कारण नाव की सवारी करने का निषेध है। थल से जल में और जल से थल में नाव को १० प्रा० सा०
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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