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________________ १४० प्राकृत साहित्य का इतिहास छठे उद्देशक में ७७ सूत्र हैं जिन पर २१६५-२२८६ गाथाओं का भाग्य है। यहाँ मैथुन-सेवा की इच्छा से किसी स्त्री (माउग्गाम') की अनुनय-विनय करने का निषेध है। मैथुन की इच्छा से हस्तकर्म करने, अंगादान को मर्दन, संवाहन, प्रक्षालन आदि करने, कलह करने, पत्र लिखने, जननेन्द्रिय को पुष्ट करने और चित्र-विचित्र वस्त्र धारण करने का निषेध किया है । सातवें उद्देशक में ६१ सूत्र हैं जिन पर २२८७-२३४० भाष्य की गाथायें हैं। यहाँ भी मैथुनसंबंधी निषेध बताया गया है। मैथुन की इच्छा से माला बनाने और धारण करने, लोहा, ताँबा आदि संग्रह करने; हार, अर्धहार आदि धारण करने, अजिन, कंबल आदि धारण करने, परस्पर पाद आदि प्रमार्जन और परिमर्दन आदि करने, सचित्त पृथ्वी पर सोने, बैठने, परस्पर चिकित्सा आदि करने, तथा पशु-पक्षी के अंगोपांगों को स्पर्श आदि करने का निषेध किया है। इस प्रसंग में विविध प्रकार की माला, हार, वस्त्र, कंबल आदि का उल्लेख है जिनका चूर्णीकार ने स्पष्टीकरण किया है। आठवें उद्देशक में १८ सूत्र हैं जिन पर २३४१-२४६५ गाथाओं का भाष्य है। आगंतगार, आरामागार आदि स्थानों में स्त्री के साथ अकेले विहार, स्वाध्याय, अशन-पान, उच्चारप्रश्रवण एवं कथा करने का निषेध है । उद्यान, उद्यान-गृह आदि में स्त्री के साथ अकेले बिहार आदि करने आदि का निषेध है । स्वगच्छ अथवा परगच्छ की निर्ग्रन्थिनी के साथ विहार आदि करने का निषेध है। क्षत्रिय और मूर्धाभिषिक्त राजाओं के यहाँ किसी समवाय अथवा मह ( उत्सव ) आदि के अवसर पर अशन-पान आदि ग्रहण करने का निषेध है। यहाँ इन्द्र, स्कंद, रुद्र, मुकुंद, भूत, यक्ष, नाग, स्तूप, चैत्य, वृक्ष, गिरि, दरि, अगड, तडाग, . . भोजपुरी भाषा में मउगी का अर्थ पत्नी होता है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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