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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास ववहार (व्यवहार),' दसासुयक्खंध (दशाश्रुतस्कंध), कप्प (बृहत्कल्प), पंचकप्प (पंचकल्प अथवा जीयकप्प-जीतकल्प)। निसीह ( निशीथ) छेदसूत्रों में निशीथ का स्थान सर्वोपरि है, और यह सबसे बड़ा है। इसे आचारांगसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध की पाँचवीं चूला मानकर आचारांग का ही एक भाग माना जाता है। इसे निशीथचूला अध्ययन कहा गया है। इसका दूसरा नाम आचारप्रकल्प है। निशीथ का अर्थ है अप्रकाश ( अंधकाररात्रि)। जैसे रहस्यसूत्र-विद्या, मंत्र और योग–अपरिपक्क लोगों के समक्ष प्रकट नहीं किये जाते, उसी प्रकार निशीथसूत्र को रात्रि के समान अप्रकाशधर्म-रहस्यरूप-स्वीकार कर गोपनीय बताया गया है। यदि कोई निर्ग्रन्थ कदाचित् निशीथसूत्र १. कहीं दसा और कल्पको एक मानकर अथवा कल्प और व्यवहार को एक मानकर पंचकल्प और जीतकल्प को अलग-अलग माना गया है । सम्भवतः आगे चलकर छह की संख्या पूरी करने के लिये पञ्चकल्प के स्थान पर जीतकल्प को स्वीकार कर लिया गया। स्थानकवासी सम्प्रदाय में निसीह, कप्प, ववहार और दसासुथक्खंध नाम के चार छेदसूत्र माने गये हैं। २. यह महत्वपूर्ण सूत्र भाप्य और चूर्णी के साथ अभी हाल में उपाध्याय कवि श्री अमरमुनि और मुनि श्री कन्हैयालाल 'कमल' द्वारा सम्पादित होकर सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा से सन् १२५७-५८ में तीन भागों में प्रकाशित हुआ है। चौथा भाग प्रकाशित हो रहा है। प्रोफेसर दलसुख मालवणिया ने 'निशीथ : एक अध्ययन' नाम से इसकी महत्वपूर्ण प्रस्तावना लिखी है। ३. जं होति अप्पगासं, तं तु निसीहं ति लोगसंसिद्धं । जं अप्पगासधम्मं, अण्णं पि तयं निसीधं ति ॥ (निशीथसूत्र-भाष्य ६९)
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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