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________________ १२२ प्राकृत साहित्य का इतिहास पुप्फचूला (पुष्पचूला) इस उपांग में श्री, ह्री, धृति आदि दस अध्ययन हैं। वहिदसा ( वृष्णिदशा) नन्दीचूर्णी के अनुसार यहाँ पर अंधग शब्द का लोप हो गया है, वस्तुतः इस उपांग का नाम अंधगवृष्णिदशा है । इसमें बारह अध्ययन हैं | पहले अध्ययन में द्वारवती (द्वारका) नगरी के राजा कृष्ण वासुदेव का वर्णन है। अरिष्टनेमि विहार करते हुए रैवतक पर्वत पर आये | कृष्ण वासुदेव हाथी पर सवार हो अपने दल-बल सहित उनके दर्शन के लिये गये। वृष्णिवंश के १२ पुत्रों ने अरिष्टनेमि के पास दीक्षा ग्रहण की।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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