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________________ १२० प्राकृत साहित्य का इतिहास -इसके बाद कूणिक कुमार ने राजा के दोषों का पता लगाकर उसे बेड़ी में बंधवा दिया और बड़े ठाठ-बाट से अपना राज्याभिषेक किया। एक दिन वह स्नान कर और अलंकारों से विभूपित हो चेलना रानी के पाद-चंदन करने के लिये गया । उसने देखा कि चेलना किसी सोच-विचार में बैठी हुई है । कृणिक ने चेलना के चरणस्पर्श कर प्रश्न किया-"माँ, अब तो मैं राजा बन गया हूँ, फिर तुम क्यों सन्तुष्ट नहीं हो ?" चेलना ने उत्तर दिया-"बेटे, तू ने तुझसे स्नेह करनेवाले देवतुल्य अपने पिता को जेल में डाल दिया है, फिर भला मुझे कैसे संतोष हो सकता है ?" कूणिक ने कहा-"माँ, वह नेरी हत्या करना चाहता था, मुझे देशनिकाला देना चाहता था, फिर तुम कैसे कहती हो कि वह मुझसे स्नेह करता था ?" चेलना ने उत्तर दिया-"बेटे, तू नहीं जानता कि जब तू गर्भ में आया तो मुझे तेरे पिता के उदर का मांस भक्षण करने का दोहद हुआ ।' उस समय तेरे पिता को हानि पहुँचाये बिना अभयकुमार की कुशल युक्ति से मेरी इच्छा पूरी की गई । तेरे पैदा होने पर तुझे अपशकुन जान कर मैंने तुझे कूड़ी पर फिकवा दिया। वहाँ मुर्गे की पूंछ से तेरी उँगली में चोट लग जाने के कारण तेरी उँगली में बेदना होने लगी। उस समय तेरी वेदना शान्त करने के लिये तेरे पिता तेरी दुखती हुई उंगली को अपने मुँह में डालकर चूस लेते जिससे तेरा दर्द शान्त हो जाता। इससे तू समझ सकता है कि राजा तुझे कितना प्यार करता था।" यह सुनकर कूणिक को अपने किये पर बहुत पश्चात्ताप हुआ, और वह हाथ में कुठार ले अपने पिता के बंधन काटने के लिये जेल की ओर चल दिया। १. बौद्धों के अनुसार राजा के दाहिने घुटने का रसपान करने का दोहद रानी को हुआ था (दीघनिकाय अट्ठकथा, १, पृष्ठ १३३ इत्यादि)। .. बौद्ध अन्यों के अनुसार अजातशत्रु ने अपने पिता को सापनगेह में रक्खा था, केवल उसकी माता ही उससे मिलने जा सकती थी।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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