SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८ प्राकृत साहित्य का इतिहास सन की १२वीं शताब्दी) ने इसकी टीका लिखी है। पहले भाग में सूर्याभदेव के विमान का विस्तृत वर्णन है। सूर्याभदेव अपने परिवारसहित महावीर के दर्शनार्थ जाता है, उनके समक्ष उपस्थित होकर नृत्य करता है और नाटक रचाता है। दूसरे भाग में पार्श्वनाथ के प्रमुख शिष्य केशीकुमार और श्रावस्ती के राजा प्रदेशी के बीच आत्मासंबंधी विशद चर्चा की गई है ।' अन्त में प्रदेशी केशीकुमार के मत को स्वीकार कर उनके धर्म का अनुयायी बन जाता है। ___ औपपातिक सूत्र की भाँति इस ग्रन्थ का आरंभ आमलकप्पा नगरी के वर्णन से होता है। इस नगरी के उत्तर-पूर्व में आम्रशालवन नाम का चैत्य था, जिसके चारों ओर एक सुंदर उद्यान था। __ चंपा नगरी में सेय नाम का राजा राज्य करता था। एक बार महावीर अनेक श्रमण और श्रमणियों के साथ विहार करते हुए आमलकप्पा पधारे और आम्रशालवन में ठहर गये । राजा सेय अपने परिवारसहित महावीर के दर्शनार्थ गया। महावीर ने धर्मोपदेश दिया। सौधर्म स्वर्ग में रहनेवाले सूर्याभदेव को जब महावीर के आगमन की सूचना मिली तो वह अपनी पटरानियों आदि के साथ विमान में आरूढ़ हो आमलकप्पा जा पहुँचा | सूर्याभदेव ने महावीर से कुछ प्रश्न किये और फिर उन्हें ३२ प्रकार के नाटक दिखाये । विमान की रचना के प्रसंग में यहाँ वेदिका, सोपान, प्रतिष्ठान, स्तंभ, फलक, सूचिका, तथा प्रेक्षागृह, वाद्य और नाटकों के अभिनय आदि का वर्णन है जो स्थापत्यकला, संगीतकला और नाट्यकला की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । इस १. मिलाइये दीघनिकाय के पायासिसुत्त के साथ । २. यहाँ वर्णित ईहामृग, वृषभ, घोड़ा, मनुष्य, मगर, पक्षी, सर्प, किसर, शरभ, चमरी गाय, हाथी, वनलता और पद्मलता के मोटिफ़ (अभिप्राय ) ईसवी सन् की पहली-दूसरी शताब्दी की मथुरा की
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy