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________________ कुछ कम प्रेरणादायक सिद्ध नहीं हुआ। जैन श्रमणों को इस क्षेत्र में अपने सिद्धांतों का प्रचार करने के लिये अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा था । सचमुच बिहार राज्य की सरकार का मैं अतीव कृतज्ञ हूँ जिसने यह सुअवसर मुझे प्रदान किया। __पूना की शिक्षण प्रसारक मण्डली द्वारा संचालित रामनारायण रुइया कालेज, बंबई के अधिकारियों का भी मैं अत्यंत आभारी हूँ जिन्होंने अवकाश प्रदानकर मुझे प्राकृत जैन विद्यापीठ में कार्य करने की अनुमति दी। प्राकृत साहित्य का इतिहास जैसी पुस्तक लिखने के लिये एक अच्छे पुस्तकालय की कमी बहुत अखरती है। पुस्तकें प्राप्त करने के लिये अहमदाबाद आदि स्थानों में दौड़ना पड़ा। आगम-साहित्य के सुप्रसिद्ध वेत्ता मुनि पुण्यविजय जी महाराज की लाइब्रेरी का पर्याप्त लाभ मुझे मिला। जैन आगम और जैन कथा संबंधी आदि अनेक विषयों पर चर्चा करके उन्होंने लाभान्वित किया। दुर्भाग्य से जैन आगम तथा अधिकांश प्राकृत साहित्य के जैसे आलोचनात्मक संस्करण होने चाहिये वैसे अभीतक प्रकाशित नहीं हुए, इससे पाठ शुद्धि आदि की दृष्टि से बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ा। इस पुस्तक के कथा, चरित, और काव्यभाग को प्राकृत के प्रकाण्ड पंडित मुनि जिनविजय जी को सुनाने का सुअवसर मिला। उनके सुझावों का मैंने लाभ उठाया। सिंघी जैन ग्रंथमाला से प्रकाशित होनेवाले प्राकृत के बहुत से ग्रंथों की मुद्रित प्रतियां भी उनके सौहार्द से प्राप्त हुई । साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत दर्शनशास्त्र के अद्वितीय विद्वान् पंडित सुखलाल जी को भी इस पुस्तक के कुछ अध्याय भेज दिये थे। उन्होंने अपना अमूल्य समय देकर उन्हें सुना और बहुमूल्य सुझाव दिये । प्राकृत जैन विद्यापीठ के डाइरेक्टर डाक्टर हीरालाल जैन का मुझ पर विशेष स्नेह रहा है। विद्यापीठ में उनका सहयोगी बन कर कार्य करने का सौभाग्य मुझे मिला, उन्होंने मुझे सदा प्रोत्साहित ही किया।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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