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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास नरक में गई। अगले जन्म में उसने चम्पा के एक सार्थवाह के घर जन्म ग्रहण किया । सुकुमालिया उसका नाम रक्खा गया । बड़ी होने पर जिनदत्त के पुत्र सागर से उसका विवाह हो गया और सागर घर-जमाई बन कर रहने लगा। लेकिन कुछ ही समय बाद सागर सुकुमालिया के अंगस्पर्श को सहन न कर सकने के कारण उसे छोड़ कर चला गया। अन्त में सुकुमालिया ने गोपालिका नामकी आयों के समक्ष उपस्थित होकर प्रव्रज्या अंगीकार कर ली। कालक्रम से सुकुमालिया मना किये जाने पर भी अपने संघ से अलग रहने लगी| वह पुनः पुनः अपने हाथ, पाँव, मुँह, सिर आदि धोने में समय-यापन करती। मर कर वह स्वर्ग में देवी हुई। अगले जन्म में वह द्रुपद राजा के घर द्रौपदी के रूप में पैदा हुई। उसका स्वयंवर रचाया गया और पाँच पाँडवों के साथ उसका विवाह हुआ | उसने पंडुसेन को जन्म दिया। अंत में द्रोपदी ने प्रव्रज्या ग्रहण की और ग्यारह अंगों का अध्ययन करती हुई, तप-उपवास में समय व्यतीत करने लगी। ___ सत्रहवें अध्ययन में कालियद्वीप के सुंदर अश्वों का वर्णन है । अश्व के दृष्टांत द्वारा धर्मोपदेश देते हुए कहा है कि साधु स्वच्छन्दविहारी अश्वों के समान विचरण करते हैं। जैसे शब्द आदि से आकृष्ट च होकर अश्व पाशबंधन में नहीं पकड़े जाते, उसी तरह विषयों के प्रति उदासीन साधु भी कर्मों द्वारा नहीं बँधते । अठारहवें अध्ययन में सुंसुमा की कथा है। एक बार विजयनामक चोर-सेनापति सुंसुमा को उठाकर ले गया। नगर-रक्षकों ने उसका पीछा किया। लेकिन चोर ने सुसुमा का सिर काटकर उसे कुएं में फेंक दिया और स्वयं जंगल में भाग गया। सुंसुमा का पिता भी अपने पुत्रों के साथ नगर-रक्षकों के साथ आया 1. डॉक्टर मोतीचन्द ने इसकी पहचान जंजीवार से की है, सार्थवाह, पृ० १७२।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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