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________________ - .. ... . . .. .. ... ... . पुढरीक ... MAA... .. . ... ../ // v i nv ". .... इस प्रकार कितने ही (सुखोपभोग तथा) पूजन-सत्कार के ।। .. लालच से उस मार्ग में चले जाते हैं और फिर दूसरों को भी फँसाते है। पहिले तो वे पापकर्म का प्यार करने के लिये . घरवार, पुत्र, .. पशु, का त्याग करके भिक्षुक श्रमण हो जाते हैं परन्तु स्वयं इच्छाओं से पर न हो सकने से स्वयं पापकर्म करते हैं और दूसरों के पास ... करवाते हैं । ऐसे स्त्री आदि काम भोंगों में ग्रासक्त लग्पट - लुब्ध पुरुष अपने आपको मुक्त नहीं कर सकते और न दूसरों . को ही। गृहसंसार छोड़ने पर भी आर्य मार्ग न प्राप्त हो सकने से थे न तो इस तरफ़ ही पा सकते हैं और न पार ही जा सकते हैं, . पर बीच में ही काम भोगों में फँस जाते हैं। . इस प्रकार, ‘जो शरीर है वही जीव है। यह मानने वाले - 'तज्जीवतच्छरीरवादी' का वर्णन समाप्त हुआ । [६] .. .. व पंचमहाभूत को मानने वाले का वर्णन करते हैं । वे भी राजा के पास आकर कहते हैं 'हे राजन् ! इस लोक में पंच महाभूत ही हैं; उनके अनुसार वारस के तिनके तक की सब वस्तुएँ हम घटा सकते हैं । पंच महाभूत-पृथ्वी, जल, तेज, वायु और श्राकाश हैं। उनके मिलने से सब पदार्थ -बनते हैं । पर ऊन पंच महाभूतों को किसी ने नहीं बनाया, वे तो अनादि और अविनाशी हैं। वे कार्यों को उत्पन्न करते हैं पर उनके लिये पुरोहित की जरूरत नहीं रहती। वे स्वतन्त्र हैं। इनके शरीराकार इकट्ठे होने पर कुठा यात्मा उत्पन्न होता है और शरीर का नाश होते ही उसका भी नाश हो जाता है। .. जो वस्तु होती ही नहीं, उसकी उत्पत्ति नहीं होती और होती है उसका नाश नहीं होता । सब प्रागी, सब पदार्थ, और सारा संसार -. पंच महाभूतोंसे बना हुआ है और ये पंच महाभूत ही नृणादि सभी
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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