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________________ - - ६८] सूत्रकृतांग सूत्र .. कष्टों तथा विघ्नों से नहीं हारता । अध्यात्म-योग से उसने अपना अन्तःकरण शुद्ध क्रिया होता है। वह प्रयत्नशील, स्थिर चित्त और दूसरों के दिये हुए भोजन की मर्यादा में रह कर जीवन-निर्वाह करने वाला होता है । [३] ___ वह निग्रंथ इस लिये कहाता है कि वह अकेला (संन्यासी-त्यागी) होता है, एक को जाननेवाला ( मोक्ष अथवा धर्म को) होता है, जागृत होता है, पाप कर्मों के प्रवाह को रोकनेवाला होता है। सुसंगत होता है, सम्यक् प्रवृति से युक्त होता है, अात्म-तत्त्व को समझनेवाला... होता है, विद्वान् होता है, इन्द्रियों की विषयों के तरफ की प्रवृत्ति और अनुकूल-प्रतिकूल विषयों तरफ राग-द्वेप दोनों के प्रवाह को रोकनेवाला होता है, पूजा-सत्कार और लाभ की इच्छा से रहित होता . है, धर्मार्थी होता है, धर्मज्ञ होता है, मोक्ष परायण होता है, तथा समतापूर्वक आचरण करनेवाला होता है ।। (भगवान महावीरने कहा है ।) यह सब मैं ने कहा है, वैसा ही तुम समझो क्योंकि मैं ही भय से रक्षा करनेवाला (सर्वन ) हूँ। -ऐसा श्री सुधर्मास्वामी ने कहा ।
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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