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________________ चौदहवाँ अध्ययन –(6) - ज्ञान कैसे प्राप्त करे ? श्री सुधर्मास्वामी बोले हे वत्स, अब मैं तुझे कहता हूँ कि ज्ञान कैसे प्राप्त करना । शास्त्रज्ञान प्राप्त करने का इच्छुक कामभोगों की आसक्ति त्याग कर, प्रयत्नपूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन करता हुआ गुरु की आज्ञा में रहकर, प्रमादरहित होकर चारित्र की शिक्षा ले। ] . मोक्ष के मूल कारण गुरु की संगति की शिप्य सना इच्छा रक्खे । गुरु की संगति के बिना संसार का अन्त वह नहीं कर सकता । मुमुचु और बुद्धिमान् शिष्य गुरु की संगति न छोड़े क्योंकि . जैसे बराबर पंख निकलने के पहिले ही घोसले के बाहर जाने वाले पक्षी के बच्चे को गिद्ध आदि उठा ले जाते हैं, वैसे ही धर्म के सम्बन्ध में दृढ़ न हुए शिष्य को विधर्मी, गच्छ या संघ में से अलग होते ही वह हमारे वश में आ जायगा, ऐसा सोचकर हर लेते हैं। [२-४] गुरु शिष्य को कठोर शब्द कहे तो भी गुरु के प्रति वह द्वेष न रक्खे । निद्रा और आलस्य त्याग कर सदा अपनी शंकाओं का. समाधान करने के लिये प्रयत्नशील रहे । बड़ा अथवा छोटा, समान . पद का अथवा समान अवस्था का कोई भी उसे सिखाता हो वह तो
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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