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संसार का सत्य विचार करने वालों बताया हैं ( प्रथम खण्ड के प्रध्ययन
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ही है,
ब्राह्मण
अध्ययन - १० ) कहा है; और मैं ' भ्रमण और ब्राह्मण को १२ वें में ) इसी प्रकार उत्तराध्ययन, यादि अनेक जैन ग्रंथों में ब्राह्मण' की प्रशंसा की है और सच्चा ब्राह्मण कौन है यह - समझाया है । निस्सन्देह यह प्रशंसा सच्चे ब्राह्मण की परन्तु सच्चा जैन बने बिना किस जैन को वर्तमान की निंदा करने का करने का अधिकार है ? और इसी प्रकार सच्चा ब्राह्मण बने विना वर्तमान जैन की निंदा करने का भी किसी ब्राह्मण को अधिकार नहीं है । जब ब्राह्मण सच्चा बन जायगा तो फिर निन्दा करने का ब्राह्मण और जैन दोनों के ग्रन्थों को एकत्रित करके उनमें से श्राध्यामिक जीवन के उपयोगी आचार विचार जीवन में उतारने का कर्तव् 1
ब्राह्मण और जैन सच्चा जैन अवकाश - ही कहाँ रहेगा ?
. में वर्णित जैन सिद्धान्त रोचक एवं ही वर्णन बौद्ध धर्म के ग्रन्थ
प्राचीन भारत के तत्त्वज्ञान के अभ्यासी के लिये सूत्रकृतांग ज्ञान वर्धक सिद्ध होंगे। ऐसा ब्रह्मजालसुत्त में भी मिलता । ऐसे सिद्धान्तों के काल का निर्णय करना तत्त्वज्ञान के इतिहासकारों के लिये एक जटिल समस्या है। बौद्ध - त्रिपिटक और विशेषतः तदन्तर्गत ब्रह्मजालसुत्त ईस्वी सन् २०० से पूर्व के हों यह उनकी भाषा के स्वरूप से सिद्ध नहीं होता । जैन - श्रागमों में सबसे प्राचीन ग्रन्थ, जो महावीर स्वामी से भी पूर्व के माने जाते हैं, पूर्व ' नाम से प्रसिद्ध हैं । और वे बाद की 'द्वादेश अंग' नामक ग्रन्थाबलि के बारहवें अंग में जिसे 'दृष्टिवाद' कहा जाता है, सम्मिलित कर लिये गये थे । किन्तु उसके काल - कवलित होने से उसके साथ ही वे ! पूर्व भी गये ! यह दृष्टिवाद और पूर्व यदि होते तो उनमें
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