SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दसवां अध्ययन --(०)--- समाधि - - श्री सुधास्वामी कहने लगे . मैं जिस मोक्षमार्ग को तुम्हें कह सुनाता हूँ उसका उपदेश मतिमान महावीर ने धर्म का साक्षात्कार करने के बाद , दिया है। वह मार्ग सीधा और अमोघ है। उसे स्वीकार करने वाला. मितु चित्त की सारी चंचलता दूर करके, सब संकल्पों से रहित हो कर, किसी भी प्राणी के दुःख का कारण बने बिना विचरे । एक बार सन्यास ले चुकने के बाद उसे दीन और खिन्न नहीं होना चाहिये । जो भोगों के सम्बन्ध में दीन वृत्ति के हैं, वे पाप-कर्म करते रहते हैं । इसी कारण जिनेश्वरों ने चित्त की सर्वथा शुद्धि और एकाग्रता प्राप्त करने का उपदेश दिया है। इस लिये, मनुष्य जागृत रहे, एकाग्र रहे, विवेक-विचार से प्रीति करे और स्थिरचित्त वाला बने । [१-३, ६-७ ] _ देखो तो,. स्त्रियों में प्रासक्त हुए अनेक प्राणी और सत्त्व, दुःख से पीडित होकर कितना परिताप उठाते हैं । स्त्रियों में विशेष प्रसंग रखने वाला. अज्ञानी पापकर्म के चक्र में फंसता है । वह स्वयं जीव हिंसा करके पाप करता है, यही नहीं, बल्कि दूसरे के पास .. करवाता है। वह अज्ञानी सिन्तु फिर तो धन सम्पत्ति का संचय करने
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy