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________________ [ ४५ वह शरीर के समस्त संस्कारों यथा, वस्ती कर्म, विरेचन, वमन, अंजन, गंध, माल्य, स्नान, दंत-प्रज्ञालन, धोना-रंगना आदिको संयम का विरोधी जान कर त्याग दे । ये परिग्रह और कामपलंग, चंवर वासना के कारण हैं । उसी प्रकार, जूते, छतरी, खाट, आदि भी त्याग दे । और निर्जीव तथा साफ किये हुए निर्दोष पानी से भी अंगों को न धोवे । [ १२ २ १८-8 ] - धर्म Goog आहार में पूर्ण संयम रखे । उसके लिये गृहस्थ ने तैयार किया हुआ, खरीदा हुआ, माँग कर लाया हुआ, जहाँ वह रहता हो वहाँ गृहस्थ लें याया हो ऐसा अथवा इन प्रकारों से मिला हुआ भोजन स्वीकार न करे । मादक आहार का सर्वथा त्याग कर दे । जितने से जीवन रह सके उतना ही श्रन्न-जल माँग लावे | ज्यादा ले आये और फिर दूसरे को देना पडे ऐसा न करे। [१४-२२३] चारित्रवान् भिक्षु किसी का संग न करे क्योंकि इसमें खतरे छुपे रहते हैं, इसलिये विद्वान् इससे सचेत रहे । वह संसारियों के साथ मंत्रणा, उनके कामों की प्रशंसा, उनकी सांसारिक समास्याओं में सलाह, उनके घर बैठकर या उनके बर्तन में खान-पान, उनके कपड़े पहनना, उनके घर बैठकर उनके समाचार पूछना, उनकी ओर से यश-कीर्ति, प्रशंसा, वन्दन-पूजन की कामना, उनके घर में कारण ही सो जाना, गांव के लडकों के खेल में शामिल होना, और मर्यादा छोड़कर हंसना इन सब का त्याग कर दे क्योंकि इनमें से अनेक अनधों की परम्परा जन्म लेती है । [१६ -८२०-२२८-६] 4 उसे अनर्थकारक प्रवृत्तियां नहीं करनी चाहिये: जैसे जुआ खेलना न सीखे, कलह न करे; पहिले की की हुई क्रीडाग्रों
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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