SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . . .... .. . . .. .. ... . . . .. १६] सूत्रकृतांग सूत्र . In . " . . . . . ... . . .. .... . .. . . . . . . .n o .1 . .. .. .... .. . . .. .... % - - ऐसी दशा विषयलित मनुष्यों की होती है। विषयों में सुख नहीं है, वे क्षणभंगुर हैं, यह जानने पर और साथही यह भी जानने पर कि ग्रायुप्य भी ऐसा ही है, वे अन्त-समय तक उनसे चिपटे रहते हैं। और, अन्त में जाकर, उन भोगों के कारण अपने हिंसादि अनेक पापकर्मों के फल भोगने के लिये उनको आसुरी आदि नीच गति प्राप्त होती है। तब वे पछताते और विलाप करते हैं। ऐसे मनुष्यों पर दया भाती है क्यों कि वे ज्ञानियों द्वारा समझाए हुए मोक्ष-मार्ग को नहीं जानते; और ससार का सत्य स्वरूप जिसने प्रत्यन करके, उसमें (संसार में ) से छूटने का मार्ग बतलाया हैं, ऐसे मुनि के वचनों पर श्रद्धा नहीं करते । अनन्त वासनाओं से घिरे हुए वे अन्धे मनुष्य अपनी अथवा अपने ही समान दूसरे की अन्धता का ही जीवन भर अनुसरण किया करते हैं। बार वार मोह को प्राप्त होकर, संसार-चक्र में भटकते रहते हैं। [२-१२] इस लिये, विवेकी मनुष्य, गृहस्थाश्रम में भी अपनी योग्यतानुसार अहिंसाडि व्रत पालने का प्रयत्न करे। और, जिसको महापुरुषों से उपदेश सुनकर सत्य-मार्ग पर श्रद्धा हो गई है, वह तो प्रत्रया लेकर सत्यप्राप्ति के लिये ही सर्वतोभाव से प्रयत्नशील होकर इसी में स्थिर रहे। वह तो राग-द्वेपादि का त्याग करके. मन, वचन और . काया को संयम में रखकर, निरंतर परमार्थ-प्राप्ति में ही लगा रहे। कारण कि मूर्ख मनुष्य ही सांसारिक पदार्थ और सम्बन्धियों को अपनी शरण मानकर, उसी में बंधा रहता हैं। वह नहीं जानता कि अन्त में तो सब को छोडकर अकेला ही जाना है तथा अपने कर्मों के कुपरिणामों को भोगते हुए, दुःख से पीडित होकर सदा इस योनि चक्र में भटकना है। अपने कमों को भोगे बिना कोई नहीं छूटेगा ।
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy