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________________ " चौथा अध्ययन : . -(0) प्रत्याख्यान श्री सुधर्मास्वामी बोले हे श्रायुष्मान् ! ( महावीर ) भगवान् से सुनी हुई एक महत्त्वपूर्ण चर्चा व मैं तुझे कह सुनाता हूँ । उसे ध्यानपूर्वक सुन | 21 इस जगत् में कितने ही लोग ऐसे होते हैं जिनमें विचार या विवेक न होने से वे जीवन भर किसी वस्तु का नियमपूर्वक त्याग नहीं करते | उन्हें ज्ञान नहीं होता कि कौनसा काम अच्छा है और कौनसा 1 बुरा । वे सर्वथा मूढ़ और निद्वित-से होते हैं। उनके मन, वचन और काया की एक भी क्रिया विचारपूर्वक नहीं होती और इससे वे अनेक 1 मिथ्या - मान्यता और प्रवृत्तियों में डूबे रहने से जीवनभर पापकर्म करते रहते हैं। संक्षेप में, उनमें स्वप्न में रहने वाले मनुष्य के समान भी होश नहीं होते । तो भी वे जो कर्म करते हैं, उनका बन्धन तो उनको होता "" आचार्य के इतना कहने पर तुरन्त ही वादी चाकर उनको कहने लगा - पापकर्म करने का जिसका मन न हो, वचन न हो, ' काया न हो अथवा जो यह हिंसा या पाप हैं जैसा जाने बिना ही हिंसा करता
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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