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________________ - .. A r r ............................. ............... ............. . UNJ .... A 4 ... .... .. . .. . ......... सूत्रकृतांग सूत्र - इसी प्रकार भुजा के अाधार से जमीन पर चलने वाले पांच . इन्द्रियवाले प्राणी जैसे कि न्योला, धूस, कछुआ, बिसमरा, छछून्दर. गिलहरी, गिरगट, चूहा, बिल्ली. जोंक और चौपाये आदि को समझा जाये। इसी प्रकार आकाश में उड़नेवाले पांच इन्द्रियवाले पक्षी जैसे . चमड़े के पंख वाले ( चमगीदड़ प्रादि) रोम के पंख वाले (सारस) आदि), पेटी के समान पक्षवाले और विस्तृत पंखवाले पक्षियों को समझा जावे । ये जीव छोटे रहने तक माता का रस खाते हैं। . कितने ही जीव अनेक प्रकार के बसस्थावर जीवों के चेतन अथवा अचेतन शरीरों के पाश्रय पर (जू, लीख, खटमल, चींटी आदि) जन्म लेते हैं; वे जीव स्थावर और ब्रस जीवों का रस पीकर जीते हैं। इसी प्रकार विष्टा आदि गंदी चीजों में तथा प्राणियों के चमड़े पर उत्पन्न होने वाले जीवों को समझा जाये। (१) जगत् में कितने ही जीव अपने कर्मों के कारण इस अथवा स्थावर प्राणियों के, चेतन या अचेतन शरीरों में (जलरूप उत्पन्न होते हैं)। वे (जलरूप शरीर) वायु से उत्पन्न होते हैं । . वायु ऊपर जाता है तो उपर जाते हैं, नीचे जाता है तो नीचे जाते हैं और तिरछा जाता है तो तिरछे जाते हैं । वे निम्न प्रकार के हैंश्रोस, हिम, कुहरा, अाले, बादल और वर्षा । वे जीव खुद जिस में उत्पन्न होते हैं, उन्हीं स्थावर ब्रस प्राणों के रस को खाते हैं। .. (२) और कितने ही (जलशरीरी जीव) ऊपर के जलों में जल रूप उत्पन्न होते हैं, और उनका रस खाकर जीते हैं।
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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