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________________ - ..... -. .. . . ......... ..."versa .. .. .. .. . .. . . . . . .. ."u r l . v - v..... .. . . ~ - ~ .. .. . .. सूत्रकृतांग सूत्र Mo..nnn. nnnnnn.hn" - परन्तु यह क्रियास्थान धर्म का स्थान है, इस कारण सेवन करना चाहिये । भूतकाल में अरिहंतों और भगवन्तों ने इसका उपदेश दिया । है और इसको सेवन किया है, वर्तमान में भी उपदेश देते और सेवन करते हैं. और भविष्य में भी ऐसा ही करेंगे । . . .. .. . - इन तेरह क्रियास्थानों को जो अरिहंत और भगवंत पहिले हो गये हैं, वर्तमानमें हैं और भविष्यमें होंगे, उन सब ने बतलाये हैं । और इनका उपदेश दिया है, देते हैं और भविष्य में देंगे। कितने ही लोग मंत्र, तंत्र, जारण, मारण, लक्षण, ज्योतिष..... अादि अनेक. कुविद्याओं के द्वारा सिद्धिया प्राप्त करते हैं। इन सब विद्याओं को वे खानपान, वस्त्र, घरवार आदि उपभोग-सामग्री प्राप्त करने के लिये और विविध कामभोग भोगने के लिये ही करते हैं। ऐसी कुविद्याओं को करके वे अनार्य कुमार्ग पर चलते हुए मृत्यु को । प्राप्त होने पर असुर और पातकी के स्थान को प्राप्त होते. हैं, वहाँ से छंटने पर गूंगे, वहरे; या अंधे होकर जन्म लेते हैं। ..... .. कितने ही लोग किसी के अनुयायी, सेवक या नौकर बनकर (उनका विश्वास प्राप्त करके) उनका खून करके या मार-पीट कर . उनका धन छीन कर अपने लिये आहार आदि भोग सामग्री प्राप्त करते हैं। .... कितने ही लोग मार्गदर्शक (रास्ता बताने वाले) बन कर यात्रियों को लूट-खसोट कर या. चोर. बन कर किसी के घर में खाद । लगा कर या. जेव काट कर अपने या अपनों के लिये आहार आदिः . भोग सामग्री प्राप्त करते हैं। ...
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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