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________________ व्याख्यान-दूसरा - - - दिया। मधुर आवाज कानों में पड़ते ही महामन्त्री प्रफुल्लित - हुये । और शीघ्र ही विस्तर में बैठ गये। गुरु महाराजने नवकार मन्त्र सुनाया। चार शरण अंगीकार कराकर धर्मलाभ कह कर महात्मा चले गये। महामन्त्री का दिल खुश हो गया । अव कुछ भी तमन्ना नहीं रही ।। दूसरे दिन गुर्जरेश्वर को समाचार भेजे गये कि: महामन्त्रीश्वर शय्यावश हैं। इसलिये राजवैद्य को शीघ्र भेजो। .. समाचार मिलते ही दूसरे दिन के सुवह महामन्त्री का समग्र परिवार राजवैद्य और गुर्जरेश्वर का अंगत संदेश ले जानेवाला राजदूत वगैरह रसाला ने जल्दी प्रवास शुरू किया । पक हफ्ता के निरन्तर प्रवास के वाद. सन्ध्या समय रसाला ने महामन्त्रीश्वर की छावणी में प्रवेश किया। ... परिवार के सभी मनुष्य तो महामन्त्रीश्वर की क्षीणकाया को देखकर रोने बैठ गये राजवैद्य ने भी उत्तम प्रकार की औपधि देने का विचार किया था, परन्तु नाडी परीक्षा करने से उनको लगा कि वचने को कोई आशा नहीं है इसलिये वे भी बहुत निराश हो गये। गुर्जरेश्वर का अंगत सन्देशा सुन कर महामन्त्री को खूब ही दुख हुआ। परन्तु. अब क्या हो सकता था । स्वस्थ होते तो वह सव हो जाता आश्वासन देने के लिये राजवैद्य ने औषधोपचार चालू किया । . . . . ___... गुर्जरेश्वर ने सन्देशा में लिखा था कि जो ज्यादा .. तवियत खराव होतो जल्दी से मुझे. खवर देना जिस से मिलने के लिये में आ सकूँ। - दूसरे दिन राजदूत को पाटण की ओर रवाना किया।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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